प्रथम दीक्षा समारोह : पंथ-संप्रदाय नहीं, मानवता से जुड़ा है योग: राष्ट्रपति
पतंजलि विवि के प्रथम दीक्षा समारोह में माननीय राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द जी के हाथों से पदक पाकर उत्साहित हुए विद्यार्थी।
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78 विद्यार्थियों स्वर्ण पदक, 700 स्नातक, 620 स्नातकोत्तर, 1 एमफिल व 11 पीएचडी विद्यार्थियों को प्रदान की उपाधि
हरिद्वार। माननीय राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द जी ने कहा कि योग किसी पंथ-संप्रदाय से नहीं जुड़ा है, बल्कि यह तो तन-मन को स्वस्थ रखने की पद्धति है। कुछ वर्ष पहले योग साधु-संन्यासियों तक ही सीमित था, लेकिन योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज ने योग की परिभाषा ही बदल कर रख दी। आज ट्रेनों, बसों और प्रतीक्षा कक्षों में बैठकर अनुलोम-विलोम करते लोग मिल जाते हैं। योग को विश्व के हर क्षेत्र और विचारधारा के लोगों ने अपनाया है।
पतंजलि में षिक्षा के विस्तार में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं बेटियाँ -शिक्षा के विस्तार में अग्रणी भूमिका निभा रही बेटियां राष्ट्रपति ने कहा कि पतंजलि विश्वविद्यालय में बेटों की अपेक्षा बेटियों की संख्या अधिक है। यह खुशी की बात है कि परम्परा पर आधारित आधुनिक शिक्षा के विस्तार में हमारी बेटियाँ अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। इन्ही बेटियों में से आधुनिक युग की गार्गी, मैत्रेयी, अपाला, रोमशा, लोपामुद्रा आदि निकलेंगी। जो भारतीय मनीषा और समाज की श्रेष्ठता को विश्व पटल पर स्थापित करेंगी। |
ये बातें राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी ने पतंजलि योगपीठ में स्थित पतंजलि विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्यातिथि के रूप में कहीं। राष्ट्रपति हरिद्वार स्थित पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षा समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने 78 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक और 700 स्नातक, 620 स्नातकोत्तर, 1 एमफिल व 11 पीएचडी विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की। छात्र-छात्राओं को शुभकामनाएं देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हरिद्वार का भारतीय परम्परा में विशेष महत्व है। यहाँ श्रीविष्णु और महादेव, दोनों का वास है। इसलिए यहां रहना और शिक्षा ग्रहण करना सौभाग्य की बात है। उन्होंने उम्मीद जताई कि छात्र-छात्राएं आलस्य और प्रमाद को त्यागकर योग परम्परा में उल्लिखित अन्नमय कोश, मनेामय कोश, प्राणमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनन्दमय कोश की शुचिता के लिए सचेत रहेंगे। विज्ञानमय कोश और आनन्दमय कोश तक की आंतरिक यात्रा पूरी करने की महत्वकांक्षा के साथ आगे बढ़ेंगे। साथ ही करुणा और सेवा के आदर्शों को आचरण में ढालकर समाज की सेवा को जीवन का ध्येय बनाएंगे। इसका उदाहरण देशवासियों ने कोरोना का सामना करते हुए भी प्रस्तुत किए।
मा.राष्ट्रपति ने कहा कि भारत उन चुनिंदा देश में शामिल है, जिन्होंने न सिर्फ कोरोना के मरीजों की प्रभावी देखभाल की, बल्कि इस बीमारी से बचाव के लिए वैक्सीन का भी उत्पादन किया। भारत में विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक चल रहा है। कहा कि सृष्टि के साथ सामंजस्यपूर्ण जुड़ाव ही आयुर्वेद और योग शास्त्र का लक्ष्य है। इस सामंजस्य के लिए यह भी जरूरी है कि हम सभी प्रकृति के अनुरूप जीवन शैली को अपनाएं और प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन न करें। योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज के प्रयासों की सराहना करते राष्ट्रपति ने कहा कि आज योग से अनगिनत लोगों को फायदा पहुंचा है। भारत के प्रयासों से वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को योग दिवस के रूप में घोषित किया। वर्ष 2016 में यूनेस्कों ने विश्व की अमूल्य धरोहर की सूची में योग को शामिल किया। सूरीनाम और क्यूबा का उदाहरण देते उन्होंने कहा कि साम्यवादी देशों में भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह धूमधाम से आयोजित किया जाता है। राष्ट्रपति ने कहा कि प्रकृति के अनुरूप जीवन शैली को अपनाएं। प्राकृतिक उत्पादों का प्रयोग करना लाभदायक होगा। माननीय राष्ट्रपति ने कहा कि पतंजलि शिक्षण संस्थान के माध्यम से देश की ज्ञान पम्रपरा को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि पतंजलि स्वदेशी उद्यमिता को बढ़ावा देने का जो कार्य कर रहा है, वह सराहनीय है। पतंजलि ने विदेशी विद्यार्थियों के लिए एक विशेष सेल का गठन किया है। इसके जरिये भारतीय मूल्य और संस्कारों का प्रचार-प्रसार होगा। साथ ही 21वीं सदी के भारत निर्माण में पतंजलि विश्वविद्यालय का अहम योगदान रहेगा।
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