आयुर्वेद अमृत

2000 वर्ष के पूर्व के आयुर्वेद और गान समय के आयुर्वेद की कड़ी को ने का माध्यम है सौमित्रेयनिदानम्

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  आयुर्वेद शाष्यत है, अनादि है किंतु पे लगभग 2000 वर्ष पूर्व आयुर्वेद काल, समय, स्थिति के कारण पिछड़ गया था। यो पिछले 2000 वर्ष के पूर्व के आयुर्वेद और वर्तमान समय के आयुर्वेद की कड़ी को 2 जोड़ने का कार्य 'सौमित्रेयनिदानम्' के माध्यम से किया गया है और हम गौरवशाली हैं कि इस कार्य में हम सहभागी बने हैं। सौमित्रेयनिदानम् शास्त्रीय शैली में लिखा प्रमाणिक ग्रंथ है।
आयुर्वेद सर्वाधिक प्राचीनतम चिकित्सा विधा - आयुर्वेद सर्वाधिक प्राचीनतम चिकित्सा विधा है किंतु यह सिद्ध करने के लिए दुनिया की या सभी विधाओं पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है। आयुर्वेद में हम मुख्य रूप तसे चरक, सुश्रुत व धनवंतरि आदि महर्षियों को प्रणेता मानते हैं, इसी प्रकार अन्य मैं चिकित्सा पद्धतियों में भी कोई न कोई पि प्रणेता अवश्य रहा है। उनके समय, काल का अध्ययन कर तथ्य व प्रमाणों के आधार प पर वैश्विक इतिहास को एक जगह रखकर हम सिद्ध कर पाएँगे कि वास्तव में आयुर्वेद ही सर्वाधिक प्राचीन, वैज्ञानिक व प्रामाणिक चिकित्सा पद्धति है। कथन से नहीं, शास्त्र य से नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के इतिहास से भी हम प्रामाणिक हैं इसका प्रमाण भी - पतंजलि के माध्यम से ही सिद्ध होगा।
हमारे पूर्वजों ने आयुर्वेद के रूप में हमें ज्ञान का अनुपम उपहार दिया है जिसमें हमें निरंतर शोध व तकनीक की सहायता से अभिवृद्धि करनी है।
उनके ज्ञान-विज्ञान को आधुनिक व विज्ञान व शोध के माध्यम से कसौटी पर कसकर संसार में पनप रहे नए रोगों की पहचान कर उनके स्वरूप, लक्षण व निदान सचित्र प्रस्तुत करना एक दुर्गम कार्य या जिसे पतंजलि रिसर्च फाउण्डेशन के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत व अथक पुरुषार्थ से सफल बनाया है।
अनुपलब्ध व्याधियों को एक स्थान पर नूतन • रूप में स्थापित करने का प्रयास है 'सौमित्रेयनिदानम्'-
यद्यपि प्राचीन शास्त्रों में दोषों के आधार पर अनेक रोगों वर्णन है परन्तु  वर्तमान समय में  उनमें से लगभग 234 रोग ही उपलब्ध हैं। अर्वाचीन युग - में दृष्यमान आयुर्वेद में वर्णित व्याधियों के अतिरिक्त - प्राचीन ग्रन्थों में पृथक् पृथक् रूप से जिनका विशेष वर्णन जो अभी तक अनुपलब्ध था, उन सबको प्रामाणिकता के साथ एक स्थान पर नूतन रूप में स्थापित करने का प्रयास ही 'सौमित्रेयनिदानम्' है। ग्रन्थ को शरीर संरचना के आधार पर 14 खंडों में विभाजित करते हुए 6821 श्लोकों में 471 मुख्य व्याधियों सहित लगभग 500 व्याधियों का सचित्र वर्णन किया गया है। साथ ही ग्रन्थ के माध्यम से आयुर्वेद की परम्परा में प्रथम बार 2500 से भी अधिक चिकित्सकीय अवस्थाओं (Clinical Conditions) का वर्णन किया गया है। सौमित्रेयनिदानम् के अंग्रेजी रूपान्तरण में श्लोक, श्लोकों की फोनेटिक्स और अंग्रेजी में विषय प्रस्तुति की गई है। साथ ही ग्रन्थ का अंग्रेजी भाषा में रूपान्तरण भी कराया गया है। यह ग्रन्थ आयुर्वेद के चिकित्सकों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए *अत्यंत उपयोगी ग्रन्थ साबित होगा। त्रिदोश या हमारी जो तीन प्रकार की मूल प्रकृति में जब किसी भी प्रकार की विकृति आती है, तो वह रोग कहलाती है। उनके नाम, स्वरूप, लक्षण आदि भिन्न हो सकते हैं। उसका भी पूरा समावेश इस ग्रन्थ में करके हमने आयुर्वेद को गौरव दिलाने का बहुत ही गौरवपूर्ण कार्य किया है। हम एक दृष्टि से नहीं, शिक्षा, चिकित्सा, कृषि, अनुसंधान, आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से सभी दिशाओं से देश को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हों इसलिए विश्वविद्यालय की स्थापना की जाती है। आज पतंजलि का ये प्रागंण और सौमित्रेयनिदानम् का लोकार्पण अपने आप में ऐतिहासिक है।
योग-आयुर्वेद से जुड़ना हमारा गौरव-
जो संसार में आया है जीवन यापन के लिए वह कुछ तो करता ही है। हमें परमात्मा ने योग-आयुर्वेद से जोड़कर संसार से रोग, शोक मिटाकर मानवता की सेवा में निमित्त बनाया है, ये सब परमात्मा की व्यवस्थाएं हैं। योग आयुर्वेद के विद्यार्थीगण को भगवान ने ऋषि विधा से, ऋशि परम्परा से जुड़कर संसार में कुछ करने के लिए निमित्त बनाया। यह हम सबके लिए प्रसन्नता और गौरव की बात है।
पूज्य स्वामी जी जैसा व्यक्तित्व न इतिहास में और न वर्तमान में-
प.पूज्य स्वामी जी महाराज उनका तप, अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ कर्म में संलग्नता, ऐसा पुरुशार्थ एवं तप करने वाला कोई शरीरधारी व्यक्ति कहीं दूर तक भी नहीं दिखता। न इतिहास में और न वर्तमान में। ऐसे पुरुषार्थ सेवा करने वाले स्वामी जी के सान्निध्य में हमें तप करने का, सेवा करने का मौका मिला है।

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