गुरु पूर्णिमा भारत की गुरु, ऋषि, वेद व सनातन परम्परा का बहुत ही गौरवपूर्ण व पूर्णता प्रदान करने वाला पर्व है: पू.स्वामी जी

भारत से पूरी दुनिया को शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में नई दिशा मिलेगी

गुरु पूर्णिमा भारत की गुरु, ऋषि, वेद व सनातन परम्परा का बहुत ही गौरवपूर्ण व पूर्णता प्रदान करने वाला पर्व है: पू.स्वामी जी

   हरिद्वार। गुरु-शिष्य की पवित्र परम्परा का प्रतीक गुरु पूर्णिमापर्व पतंजलि योगपीठ के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी रामदेव जी महाराज व महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के सान्निध्य में पतंजलि वैलनेस, योगपीठ-2 स्थित योगभवन आडिटोरियम में मनाया गया। इस अवसर पर परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने कहा कि गुरु पूर्णिमा भारत की गुरु परम्परा, ऋषि परम्परा, वेद परम्परा व सनातन परम्परा का बहुत ही गौरवपूर्ण व पूर्णता प्रदान करने वाला पर्व है।
    उन्होंने कहा कि अलग-अलग कारणों से पूरी दुनिया में इस्लाम, इसाईयत, कम्यूनिज्म, कैपिटलिज्म और अलग-अलग प्रकार के वैचारिक उन्माद भौतिकवाद, इंटिलेक्चुअल टैरिरिज्म, रिलिजियस टैरिरिज्म, पाॅलिटिकल, इकाॅनोमिकल टैरेरिज्म, मेडिकल टैरेरिज्म, एजुकेशनल टैरेरिज्म सब एक्सपोज हो चुके हैं। ऐसे में सबकी दृष्टि भारत की ओर है कि भारत से पूरी दुनिया को शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में नई दिशा मिलेगी। यह दिशा देने का कार्य भारत गुरु देश के रूप में करता रहा है, इसीलिए भारत विश्वगुरु रहा है।
     उन्होंने कहा कि भारत अपनी उस भूमिका में पुनः आए, इसके 100 करोड़ से अधिक सनातनधर्मी अपने गुरुओं के सच्चे प्रतिनिधि बनें। योग तत्व, वेद तत्व व सनातन तत्व को अपने जीवन व आचरण में धारण करें। हमारे आचरण से किसी भी प्रकार से हमारी गुरु, ऋषि, वेद व सनातन परम्परा कलंकित नहीं होनी चाहिए। गुरु पूर्णिमा का पर्व सनातन धर्म को युग धर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करने का पर्व है।
     कांवड़ मेले के दौरान प्रशासन द्वारा अस्थाई दुकानों व ढ़ाबा मालिकों के नाम के सत्यापन को लेकर स्वामी जी ने कहा कि जब रामदेव को अपनी पहचान बताने में कोई दिक्कत नहीं है, तो रहमान को क्यों दिक्कत होनी चाहिए। अपने नाम पर तो सबको गौरव होता है। नाम छिपाने की कोई जरूरत नहीं है, अपने कार्य में शुद्धता व पवित्रता लाने की आवश्यकता है। कांवड़ मेले को लेकर उन्होंने कहा कि कांवड़ के यात्री शिवत्व धारण कर ऐसा आचरण करें कि सबको लगे कि यह कांवड़िया नहीं अपितु साक्षात शिव-पार्वती का साक्षात विग्रह जा रहा है।
       इस अवसर पर प.पू.आचार्य जी महाराज ने कहा कि गुरु पूर्णिमा का यह पर्व हम सबके जीवन में सात्विकता व पवित्रता लेकर आए। हम अपने पूर्वजों के जीवन के आधार पर जीवन जीने का संकल्प लें। जीवन में हम अच्छे व सच्चे बनना चाहते हैं तो इसके लिए सफल, सक्षम महापुरुष के सान्निध्य की आवश्यकता होती है। सिखाने व ज्ञान देने वाले को ही हमारे शास्त्रों में गुरु कहा गया है। सब गुरुजनों को भी इस दिवस पर प्रणाम। अपने जीवन में किसी ऐसे आदर्श गुरु, महापुरुष का आश्रय व आलम्बन लें जिससे जीवन के अनसुलझे पहलु सुलझ जाएँ। कावंड़ यात्रा के विषय में प.पू.आचार्य जी महाराज ने कांवड़ियों से आह्वान किया कि आप बड़ा तप कर रहे हैं तो आपकी वाणी व व्यवहार में भी संयम झलकना चाहिए। श्रद्धा-भक्ति में न तो उद्दंडता होनी चाहिए और न ही किसी को कष्ट होना चाहिए। इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध सभी इकाईयों के सेवाप्रमुख, संन्यासीगण, इकाई प्रमुख, विभागाध्यक्ष तथा प्रभारीगण एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
 

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