पतंजलि एक धर्मषाला नहीं एक प्रयोगषाला है: पूज्य मोरारी बापू
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पतंजलि योगपीठ के प्रथम चरण के नवनिर्मित आॅडिटोरियम भवन के प्रथम कार्यक्रम परम पूज्य स्वामी जी महाराज, पूज्य मोरारी बापू जी महाराज, श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज एवं प्रति कुलपति डाॅ. महावीर अग्रवाल जी एवं पतंजलि परिवार की विभिन्न प्रकल्पों की उपस्थित कार्यक्रम हुआ।
जिसमें कथावाचक पूज्य मोरारी बापू जी महाराज द्वारा अपने उद्बोधन में कहा कि आज पतंजलि में जो कार्य हो रहा है जो टेक्नोलाॅजी सपोर्ट कर रहा है, उसे देखकर मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत प्रसन्न हूँ। पतंजलि एक धर्मशाला नहीं बल्कि प्रयोगशाला है जहाँ पूरे देश से बच्चे आकर कुछ नया सीखते हैं, जो भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को एक नई दृष्टि देंगे और इसमें कोई संदेह नहीं। साथ ही साथ देश को अत्यंत दिव्यता देने के लिए पतंजलि योगपीठ इतिहास लिखेगा। मेरी ईश्वर से प्राथना है की यहाँ का बल बढ़े, बुद्धि बढ़े, विद्या बढ़े क्यूंकि सम्पूर्ण विश्व को इनकी जरूरत है। इस सम्पूर्ण योगपीठ की रक्षा स्वयं भगवान पतंजलि कर रहे हैं और इन बच्चों को देखकर लगता है, मानो किसी में विवेकानंद, किसी में राम, किसी में महाराणा प्रताप, तो किसी में चंद्र शेखर छुपा है।
बाबा कह रहे थे कि हमारे विश्वास को विज्ञान सपोर्ट कर रहा है। यह सब यहाँ हो रहा है, उसके व्यक्तिगत रूप में मुझे बहुत प्रसन्नता है और कुछ ना कहते हुए यहाँ कोई एक दूसरे का गुणगान गाने का कोई उपक्रम नहीं है। यहाँ आने के कारण मेरे मन में जो भाव है, मैं भारत का भविष्य देख रहा हूँ। यह संन्यासिनी बहनें, यह युवा साधु, युवा अध्यापक, यह जो हमारी उद्धघोषणा है यह सब और यह बालक, यह बच्चे गांव-गांव से यहाँ आते है पूरे देश से आ रहे है, इतनी संख्या में आ रहे है और जैसे पूज्य स्वामी जी ने बताया कि कोई यह कर रहा है, कोई यह कर रहा है ये कितनी बड़ी उपलब्धि है, कितना बड़ा परिणाम है। यहाँ आएं इस आश्रम को धर्मशाला ना समझें, प्रयोगशाला समझे। यहाँ कुछ हो रहा है और यह बच्चे इतनी छोटी उम्र से ही यहाँ आए हैं ये जो बीज की तरह है भविष्य भारत और भारत के द्वारा विश्व को एक दृष्टान्त देगा कि क्या विशाल वटवृक्ष की तरह यह फूलेंगे। बच्चों आप यहाँ आये ये आपका भी बहुत सद्भाग्य है और रामायण के नाते भी कहता रहता हूँ कि भारत का ऋषि किसी से सम्पति नहीं मांगता ,संतति मांगता है। ये बाबा क्या मांगते है, कोई चंदा इकट्ठा करने जाते हैं। ये क्या मांग रहे है, ये तो संन्यासी है, भिक्षुक है, एक गृहस्थांे की संतति मांग रहे है कि भारत की संस्कृति के लिए ,सभ्यता के लिए, यज्ञं के लिए हमारी मूल धारा के लिए पैसे नहीं आपके पुत्र-पुत्रियाँ दो और वो भारत के ऋषि-मुनियों के विजन को ऋषि-मुनियों की ये जो एक दिव्य दृष्टि से जो उसने देखना चाहा वो चरितार्थ करने के लिए आप आएं है।
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