सनातन पर पूज्य योगगुरु स्वामी जी महाराज
On
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पूरे देश में सनातन पर बड़ी बहस छिड़ी है। सनातन मूल्यों पर इंडिया टीवी न्यूज एंकर मिनाक्षी जोशी के साथ परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज का सााक्षात्कार हुआ जिसमें उन्होंने सनातन की परिभाषा व सनातन मूल्यों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने सनातन धर्म को राष्ट्रधर्म व विश्वधर्म की संज्ञा दी। इस साक्षात्कार को हम हू-ब-हू आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं- |
प्रश्न: सनातन धर्म है क्या? क्यों बार-बार, घूम-घूम कर बात हिन्दू, हिंदुत्व और अन्य धर्मों के इर्द-गिर्द घूमती है और सनातन धर्म पर आ जाती है?
जवाब: सनातन धर्म राष्ट्र का ही धर्म नहीं है, यह मानव धर्म है। यह भारत का ही धर्म नहीं, युग धर्म है। शायद कुछ लोग जिनको इतिहास और भाषा की पूरी जानकारी नहीं है, उनको मेरी यह बात अटपटी सी लगे।
हमारे किसी भी हिंदू धर्म ग्रंथ में हिंदू शब्द है ही नहीं। जिनको हम हिंदू धर्म ग्रंथ कहते हैं उनके अनुसार हमारे किसी भी सनातन हिंदू धर्म, वैदिक धर्म, ऋषि धर्म में कोई ब्राह्मणवादी व्यवस्था, सामंतवादी या पूजीवादी व्यवस्था है ही नहीं। मैं एक कदम आगे बढकर कह रहा हूँ, सनातन धर्म राष्ट्र धर्म ही नहीं, भारत का ही धर्म नहीं अपितु विश्व धर्म है, युग धर्म है। दूसरी बात, सनातन का मतलब क्या है? हिंदू तो सिंधु से हिंदू है। और हिंदू के कई अर्थ दूसरे भी होते हैं मैं उस विषय में नहीं जाना चाहता। मूल धर्म है- सनातन धर्म। सनातन का अर्थ है- शाश्वत, नित्य, कभी भी जो खत्म न होने वाले सत्य हैं, धर्म है, न्याय है, व्यवस्था है एक जीवन शैली है, एक यूनिवर्सल लाॅ है, उस इटर्नल को ही, शाश्वत को ही, उस नित्य को ही सनातन कहते हैं। तो आप सनातन धर्म कहो, शाश्वत धर्म कहो, नित्य धर्म कहो, युग धर्म कहो, विश्व धर्म कहो या इटर्नल ट्रूथ, यूनिवर्सल लाॅ, यूनिवर्सल ट्रूथ, साइंटिफिक ट्रूथ कहो, यही सनातन धर्म है।
प्रश्न: जब आप कहते हैं सनातन शाश्वत है, शाश्वत- जिसका न आदि है, न अंत है। अब जो धर्म अनंत है, इसका अर्थ तो ये ही हुआ कि जितने भी धर्म, मत, संप्रदाय हैं वो सब सनातन धर्म से निकले हैं, इसका आशय तो यही समझ में आता है। तो फिर ईसाई यह कहें कि हम भी सनातनी हैं, कोई इस्लाम का जानकर कहे कि हम भी सनातनी हैं, तो क्या ये अतिश्योक्ति नहीं होती?
जवाब: जो ईसाइयत में, इस्लाम में, यहूदियों में, यहाँ तक कि लेनिन, माक्र्स और माओ को जो मानने वाले कन्फ्युसीयस जो बहुत बड़े गुरु थे, पूरे यूरोप में जो भी अलग-अलग समय में सुकरात से लेकर प्लेटो से लेकर जो भी गुरु हुए, उन्होंने भी जिन मूल सिद्धांत को कहा है, वह शाश्वत सिद्धांत हैं। इसलिए सनातन धर्म की मूल शिक्षाओं पर ही आधारित है। इसके ऊपर मैं पूरा एक महाग्रंथ लिख सकता हूँ। पूरे विश्व में इस्लाम में, ईसाइयत में, यहूदियों में, कन्फ्युसीयस लेनिन, माक्र्स, माओ आदि प्लेटो और अरस्तु से लेकर तमाम जितने भी बड़े दार्शनिक हुए उनकी जो मूल शिक्षाए हैं, वह वेदों से और भारत से ही निकली हैं, क्योंकि भारत विश्व की प्रथम संस्कृति है।
हमने दुनिया को सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था, धर्म व्यवस्था, न्याय व्यवस्था दी। बाकी साइंस और टेक्नोलाॅजी यह तो एक मनुष्य के सतत उत्कर्श का एक परिणाम है। उसको हमें स्वीकार करना चाहिए और साइंटिफिक टेंपरामेंट के साथ हमें सनातन धर्म के मूल्यों को देखना चाहिए। इसलिए कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि संसार के सभी धर्म यदि यह बात कहते हैं कि हमारे पास भी सनातन मूल्य हैं तो उनको हम मानते हैं। लेकिन उनके पास समग्रता में नहीं हैं। कुछ छूट गया है, कुछ चूक गया है, बाइबिल में या कुरान में। यदि उनको पूरा देखना है तो सनातन धर्म में ही देखना होगा।
प्रश्न: अगर वाकई सनातन धर्म इतना अच्छा धर्म है, अगर सनातन ही शाश्वत धर्म है और यही अनंत धर्म है तो इसी से सारी शाखाएँ हैं तो इतनी शाखाओं की आवश्यकता क्या थी? क्यों फिर बुद्धिज्म निकला, क्यों जैनिज्म निकला, क्यों इस्लाम को मानने वाले हैं, क्यों ईसाइ धर्म को मानने वाले हैं? क्यों सिख परम्परा को मानने वाले हैं, फिर इतने धर्मों की आवश्कयता ही नहीं थी। सब सनातन धर्म को ही मानते।
उत्तर: इसको दो भागों में समझो, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और भारत की जो अलग-अलग गुरु परम्पराएँ हैं, दक्षिण में रूढ़िवादी प्रथाओं के खिलाफ भगवान् वस्वन्ना हुए, संत ज्ञानेश्वर जी, संत तुकड़ो जी, संत गाडगे जी महाराज, आदि शंकराचार्य जी, मध्वाचार्य जी, रामानंदाचार्य जी, रामानुजाचार्य जी, गुरु शंकरदेव, गुरु माधवदेव और अनेक शैव, शाक्य जो अलग-अलग परम्पराएँ हैं, 12-14 अखाड़े हैं, फिर उसमें भी वैष्णव सम्प्रदाय अलग है, फिर संन्यासियों के सम्प्रदाय थोड़े अलग-अलग हैं, तो गुरु परम्पराएँ भिन्न हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान जो यम-नियम है, क्षीर समाधि जो प्रज्ञा के सिद्धांत हैं। जीवन के जो श्रेष्ठ व्रत हैं- सत्य है, अहिंसा है, न्याय है ये बिना किसी भेद भाव के, सबके भीतर एकत्व का बोध, सह-अस्तित्व का बोध कराते हैं। अर्थात् हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं, भाषाओं का जुबान का फर्क हो सकता है। गुरु परम्परा, सम्प्रदाय परम्परा, देश, काल या समय के अनुरूप कोई अलग-अलग परम्पराओं का उद्भव देखा जा सकता है, उनका एक महिमामण्डन देखा जा सकता है। गुरु परम्परा, सम्प्रदाय परम्परा या अलग-अलग कालखण्डों में किसी सत्य के ऊपर विशेष बल दिया गया तो इस भेद के होने से सत्य का भेद नहीं होता। सत्य तो त्रिकाल में एक जैसा होता है।
प्रश्न: लेकिन परम पूज्य स्वामी जी महाराज अब यही अगर इस्लाम धर्म को मानने वाले कहने लगें कि योगी आदित्यनाथ सनातन धर्म को राष्ट्र का धर्म बता रहे हैं, ये संविधान संगत नहीं है, ये उसके अनुरूप नहीं है। क्योंकि आर्टिकल २६ हमें यह कहता है कि हम अपने-अपने मत-सम्प्रदाय का पालन कर सकते हैं। लेकिन जब आप यह कह देते हैं कि सनातन धर्म राष्ट्र का धर्म है, तब पीड़ा होती है।
उत्तर: देखो, जो लोग धार्मिक दृष्टि से, बौद्धिक दृष्टि से, या मैं कहूँगा कि आध्यात्कि दृष्टि से, सांस्कृतिक दृष्टि से अपरिपक्व हैं, वो इस तरह की बातें करते हैं। हमारे संविधान में कहीं पर भी धर्म निरपेक्ष शब्द है ही नहीं, पंथ निरपेक्ष शब्द है। पंथ, मजहब, परम्पराएँ अलग-अलग हैं। विविधता में एकता है और एकता में अनेकता है। एक ही ब्रह्म से, एक ही ईश्वर, खुदा, अल्लाह से, एक ही अलमाइटी गाॅड, वाहेगुरु, परमात्मा से कुछ प्रकृतिवादी हैं, आस्तिक हैं। कुछ नास्तिक हैं न, लेकिन मैं नास्तिक को नकारात्मकता में नहीं लेता, कुछ प्रकृतिवादी हैं, कुछ परमेश्वरवादी हैं, ईश्वरवादी हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। संप्रदाय निरपेक्ष होना, पंथ निरपेक्ष होना अलग बात है, लेकिन धर्म निरपेक्ष तो कोई हो ही नहीं सकता। धर्म तो जैसे- अग्रि का धर्म जलाना है, जल का धर्म शीतलता है, धरती का धर्म सबको आश्रय देना है, सबको अन्न, औषधियाँ, फल, शाक, सब्जियाँ देना है, पेड़-पौधों का धर्म आॅक्सीजन देना है, मनुष्य का धर्म सबको उभारना है, यही सनातन धर्म है। सनातन सत्य ईसाइयत में भी है, जैनिज्म में भी है, सिखिज्म में भी है, बौद्धिज्म में भी है और सारे जितने भी अलग-अलग प्रकार के मत-पंथ-संप्रदाय हैं सब में है लेकिन भारतीय परंपराओं में जो संप्रदाय पैदा हुए हैं इसमें तो कोई भेद ही नहीं है। इस्लाम और ईसाइयत के जो लोग हैं तथा वे लोग जो ईश्वर को नहीं मानते जैसे- कन्फ्युसियस, लेनिन, माक्र्स तथा माओ आदि, उनको भी मैं इसमें सम्मिलित कर रहा हूँ। और कुछ जो हैं शाश्वत सत्य के उद्घोषक हैं जैसे- प्लेटो, अरस्तु आदि सबको मैं एक साथ लेते हुए इस बात को कह रहा हूँ वहाँ आंशिक रूप से इन सत्यों को कहा गया है। हमारी सनातन परंपरा में समग्र रूप से इन सत्यों को कहा गया है। इसलिए यह कोई भेद वाला विषय नहीं है। मेहरबानी करके जो लोग संविधान का ट्रांसलेशन ठीक से नहीं पढ़े उनको एक बार पढ़ लेना चाहिए। संविधान का जो आॅफिशियल ट्रांसलेशन है, उसमें पंथ निरपेक्ष शब्द है, धर्म निरपेक्ष शब्द नहीं है। धर्म तो सनातन ही है। मत, पंथ, संप्रदाय भिन्न-भिन्न हैं, उनका हम आदर करते हैं। अनेकता में एकता और एकता में अनेकता। एक ही ब्रह्म से, एक ही प्रकृति से और एक ही परमेश्वर से, यह सारा जगत उद्भव हुआ है, उत्पन्न हुआ है और सब ‘अन्ततोगत्वा’ एक ही सत्य के उपासक हैं।
प्रश्न: बहुत संक्षेप में, क्या ईसाई धर्म को मानने वाले या इस्लाम धर्म को मानने वाले या जैन या बौद्ध या जितने भी और मत, पंत, सम्प्रदाय का आपने जिक्र किया, वो सब सनातनी हैं?
जवाब: सभी सनातनी हैं और भारत की इस जमीन पर उपजे जो भी संप्रदाय हैं, वह सनातनी हैं, उसमें हिंदू शब्द नहीं जोडना चाहिए। रही बात ईसाइयत और इस्लाम, बस इनको थोड़ा-सा आप अलग यूँ करके देखिए कि वहाँ पर भी सनातन सत्यों का समावेश है, लेकिन वह आंशिक रूप से है और सनातन धर्म में समग्रता से सनातन सत्य हैं। बस इतना ही फर्क है। तो समग्रता से आपको उसको स्वीकार करना है, पूरे सनातन मूल्यों को आप अपनाइये। यदि आपको आंशिक रूप से सनातन सत्यों को अपनाना है तो आप इस्लाम और ईसाइयत को अपनाइये, कोई दिक्कत नहीं, उसका भी आदर है।
प्रश्न: लेकिन आप रहेंगे सनातनी क्योंकि भारत की मिट्टी में जन्म लिया है!
जवाब: सनातनी रहेंगे और पूरे जो विश्व के जो श्रेष्ठ मूल्य हैं, जो यूनिवर्सल लाॅ हैं, जो साइंटिफिक टेंपरामेंटर हैं, जो एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, सार्वभौमिक, सर्वहितकारी जो एक सिद्धांत है, मूल्य, आदर्श हैं, वह सब सनातन सत्य ही हैं, वह सनातन धर्म ही है।
प्रश्न: लेकिन स्वामी जी जब शाश्वत धर्म को हम सगुण और निर्गुण में बाँट कर देखते हैं, तो फिर हमे ईश्वर की पूजा करने की आवश्यकता क्या है? हमें राम मंदिर की आवश्यकता क्यों है? हमें किसी मूर्ती पूजा की आवश्यकता क्यों है? फिर तो यह प्रश्न भी उठेंगे न, क्यूंकि योगी आदित्यनाथ यह कहते हैं कि राम मंदिर राष्ट्र का मंदिर है?
जवाब: मूर्त-अमूर्त, प्रत्यक्ष-परोक्ष, व्यक्त-अव्यक्त, सगुण-साकार, निर्गुण-निराकार, प्रवश्त्ति-निवश्त्ति, अभ्युदय-निःश्रेयस, प्रार्थना, पुरुषार्थ और यह मैं एक लंबी शंश्खला बोल सकता हूँ। यह सत्य के दो पहलू हैं- इस पूरे जीवन और जगत में, पिंड ब्रह्मांड में, जो विजिबल ट्रूथ हैं, नाम, रूप, स्वरूप जिनका दिख रहा है, वह तो 1 ही प्रतिशत है, 99ः तो इस जीवन और जगत में पिंड, ब्रह्मांड में, अश्य सत्य हैं। इसलिए सब नाम, रूप, स्वरूप, संबंध सब प्रभु के ही हैं, ‘दिस बाॅडी एंड यूनिवर्स इस द लाइव एक्सप्रेषन आॅफ अलमाइटी एंड बियोंड दिस लाइफ एंड एक्सप्रेशन द इनविजिबल एक्जिस्टेंस’ दिस इस आल्सो पराब्रह्मा। तो एक सगुण-साकार, निर्गुण-निराकार सत्य के दो रूप हैं मैटर एंड एनर्जी।
तो मैटर और एनर्जी इसी को ही आप सगुण, साकार, निर्गुण, निराकार कह लीजिए, इसमें कोई फर्क नहीं है। सारा जगत अंततः एक मूल ऊर्जा से उत्पन्न हुआ है। इसलिए हमारे यहाँ पर राम की भी दो तरह की उपासना है- एक दशरथ पुत्र राम हैं और एक कण-कण में रमे हुए राम हैं। तो इसमें कोई फर्क नहीं है। यह जो फर्क कर रहे हैं, वह भी कुछ अविवेकी लोग हैं, उनको भी यह सोचना चाहिए और खास कर भारत में जिन्होंने जन्म लिया है, उन सबके तो पूर्वज राम हैं, कृष्ण हैं, हनुमान हैं, गौतम, कणादी, जैमिनी, पाणिनि, पतंजलि हैं। मैं कहता हूँ, हम सबके मजहब अलग हो सकते हैं, लेकिन हमारे पूर्वज, हमारा खून, हमारे डी.एन.ए. तो एक हैं। यही बात तो मैंने आज से 13-14 साल पहले देवबंद में भी कही थी और सबने तालियां बजाई थी। सब ने इस बात को कहा था कि हाँ, हमारे पूर्वज एक हैं। लेकिन मजहब अलग हैं। कोई बात नहीं, मजहब तो कालखंड के अनुरूप, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक कारणों से बनते हैं और मजहब तो बनते-बिगड़ते रहते हैं, लेकिन सत्य शाश्वत है।
प्रश्न: राष्ट्र का मंदिर तो संसद होना चाहिए ना, राष्ट्र का मंदिर राम मंदिर कैसे?
जवाब: देखिए! एक है हमारा सांस्कृतिक मंदिर और एक है हमारा सांस्कृतिक संविधान। हमारा सांस्कृतिक मंदिर हमारे पूर्वजों के आदर्श हैं। यदि हिंदुस्तान में से राम को, कृष्ण को, हनुमान को, शिव को, गौतम, कणाद, जैमिनी, पाणिनी, पतंजलि को, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद को, अपने महान् पूर्वज, ऋषि-ऋषिकाओं, वीर-वीरांगनाओं को अलग कर दिया जाएगा तो यह संसद किस काम की रहेगी। इसलिए एक है हमारा सांस्कृतिक मंदिर, एक है हमारा सांस्कृतिक सिद्धांत और सांस्कृतिक संविधान, सनातन संविधान। वह है हमारा वेद, दर्शन, उपनिषद, रामायण, महाभारत, भगवद्गीता, पुराण, आयुर्वेद और तमाम हमारे कालिदास आदि, वह हमारे महर्षि वाल्मीकि आदि, आदिकवि, महाकवि।
तो एक हमारा सांस्कृतिक संविधान है- सनातन संविधान और एक हमारा राष्ट्र का संविधान है। और इन दोनों को बराबर गरिमा देनी चाहिए। मैं ऐसा ही देता हूँ और मैं आपके सामने बैठा हूँ।
मैं कभी भी देश के संविधान को, देश के कानून को वाॅइलेट नहीं करता हूँ। और मैं अपने सांस्कृतिक, सनातन संविधान को भी वाइलेट नहीं करता हूँ। ऐसा ही सारे देशवासियों को जीना चाहिए, इसमें क्या दिक्कत है मिनाक्षी जी।
प्रश्न: नहीं तो ओवैसी साहब कभी यह कहेंगे कि हाँ, राम मंदिर राष्ट्र का मंदिर है, मानेंगे वह इसे ?
जवाब: ओवैसी साहब से पूछो कि 500-1000 साल पहले हिंदुस्तान में और पूरी दुनिया में 14०० साल पहले क्या था? तो 1400 साल पहले पूरी दुनिया में मुसलमान से पूछो क्या था, केवल सनातन धर्म ही था। ईसाइयों से पूछो 2000 साल पहले क्या था, सनातन धर्म ही था। जो लेनिन, मास्क, माओ और कन्फ्यूशियस के जो शिष्य हैं, उनसे पूछो कि 3000 साल पहले क्या था? चाइना वालों से पूछो, लंका, संस्कृति और पूरी दुनिया में यूनान, मिश्र सारे यह सब मिट गए जहाँ से। यह सब 3 हजार, 5 हजार, 10 हजार, 20 हजार, एक अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 120-22 वर्ष पहले जा करके देखिए, इतना बड़ा कैलेंडर है हमारा। तो आज यह जो बातें हो रही हैं न, वह सरफेस पर हो रही हैं। हमें इसके मूल में जाना चाहिए और मूल में है सनातन धर्म। और मूल को भूलने से यह सारे लड़ाई झगड़े फसाद हैं। एक है सनातनी संस्कृति और दूसरी हो जाती है तनातनी संस्कृति। मैं तनातनी संस्कृति का उपासक नहीं हूँ, मैं सनातनी संस्कृति का उपासक हूँ।
प्रश्न: अच्छा, लेकिन जब आप स्वामी जी समग्रता की बात करते हैं और समग्रता के विषय में रामचरित मानस को कहा जाता है कि आप उसे पढ़ें, इसमें समग्रता है, इसमें मानवीय मूल्य और सिद्धांत हैं, वह समझाए गए हैं। लेकिन तभी कुछ नेतागण आते हैं और यह कहते हैं, कि ढोल, गंवार, पषु और नारी, सकल ताडना के अधिकारी, यह रामचरित मनास में ही लिखा गया है। इसका अर्थ यह है कि आप इन्हें सबसे निकृष्ट मान रहे हैं। ताडना का अर्थ वह समझते हैं कि यह प्रताड़णा के अधिकारी हैं। तब एक बार फिर प्रश्न खड़ा होता है कि हम जिन किताबों को उचित मानते हैं, हम जिन मानवीय मूल्यों को समझने के लिए एक सिद्धांत मानते हैं, क्या वाकई में यह है भी?
जवाब: मैं आपके प्रश्न को थोड़ा विस्तार से कह देता हूँ। यह बहुत बड़ा लालछन लगाते हैं, आरोप लगाते हैं सनातन धर्म पर, सनातन संस्कृति पर कि यह जातिवादी है, सामन्तवादी है, इसमें भेदभाव है।
कुछ धर्मों में हलाला और फिर तमाम तरह के क्या-क्या मजहबी उत्पात और कई तरह की और बुराइयां हैं, स्त्री और पुरुषों के नाम पर भेदभाव हैं। मैं पूछता हूँ क्या आज तक दुनिया कि किसी भी मस्जिद में बहनों को नमाज पढ़ने की इजाजत है? मैं यह नहीं कहता हूँ कि कुरान से, बाइबल से भेदभाव चल रहा है। आज तक जो पोप, जो हमारे ईसाइयों के प्रमुख होते हैं, कोई लेडी बनी? कोई कोई भी मक्का-मदीना से लेकर के, सऊदी अरबिया से लेकर के, तुर्की से लेकर के इराक, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर किसी मस्जिद का जो प्रमुख होता है, धर्म गुरु होता है, मुल्ला, मौलवी, मौलाना जो भी नाम बोलते हैं, कोई बहन बनी आज तक? हम पर, स्त्री और पुरुष के नाम पर भेदभाव का आरोप लगाने वाले जरा कान खोल के सुन लें, तीन बातें है- कुछ तो शास्त्रों में मिलावट की गई है, वेदों को छोड़ करके, वेद अपौरुषेय हैं और उनका श्रुत परंपरा से कंठकरण होता रहा है इसलिए उनमें मिलावट न हो सकी, बाकी शास्त्रों में मिलावट है, यह हम मानते हैं और स्वीकार करते हैं। और उसका शुद्धिकरण का कार्य हम करेंगे।
दूसरी बात- कुछ अविवेकी लोग यह जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र का जो अर्थ करते हैं, वह सुन लें कि जो अज्ञान को दूर करे- वह ब्राह्मण, जो अन्याय को दूर करे- वह क्षत्रिय, जो अभाव को दूर करे- वह वैश्य, और जो अशुचिता को दूर करे और उस सुचिता और सेवा को फैलाए वह शुद्र। शूद्र का अर्थ पवित्र होता है। यह तो शाब्दिक अर्थ मैंने बताए। महर्षि दयानंद के सत्यार्थ प्रकाश को एक बार लोग पढ़ लें, तो यह सारा अज्ञान का पर्दा हट जाएगा। पूरा हिन्दुस्तान उनका द्विशताब्दी महोत्सव भी मना रहा है।
तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ वेदों को पढ़िए, दर्शन, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, भगवद्गीता, पुराणों को पढ़िए और उनमें कुछ राजनैतिक, कुछ आर्थिक कारण रहे। कुछ अंग्रेजों ने, कुछ मुसलमानों ने षड्यंत्र करके उनमें जो प्रक्षेप करा दिये कि उनको मत देखिए। एक शास्त्र में दो सत्य नहीं हो सकते। हमारे सभी शास्त्रों में किसी भी तरह से कोई भेदभाव नहीं है। यह तो शास्त्र की बात हुई, दूसरी बात रही जीने की तो पतंजलि योगपीठ में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र एक साथ वेदशास्त्र पढ़ रहे हैं, कोई भेदभाव नहीं है। स्त्री-पुरुष का कोई भेदभाव नहीं है। कोई जाति का, कोई पंथ का, कोई देश का भेदभाव नहीं है।
तो सनातन धर्म कैसा होता है? जैसा पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज रहा है, वैसा होता है। स्वामी रामदेव की तरह इस देश के लाखों-करोड़ों सनातनधर्मी, ऋषि-ऋषिकाओं की संताने उनके उत्तराधिकारी इस सत्य को जी रहे हैं। यह सनातन धर्म है, मिनाक्षी बहन। अब सनातन धर्म के नाम पर कोई ढोंग, आडंबर, पाखंड, अंधविश्वास फैलाता है, शनि, राहु, केतु, भूत, प्रेत और तमाम तरह के इधर-उधर के जादू-टोना के नाम पर सनातन धर्म को बदनाम करता है तो यह उस व्यक्ति के अंदर दोष है, सनातन धर्म में दोष नहीं है।
प्रश्न: पूज्य स्वामी जी महाराज आप तो जादू-टोना तक चले गए, मैं तो इतनी सी बात आपसे पूछना चाहती हूँ कि यह जब योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि गौ-ब्राह्मणों का संवर्धन उनकी रक्षा करना है, तब तो ऐसे एक खांचे में बाँधकर देखा जाएगा ना। ब्राह्मण यानी ब्राह्मण जाति को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है?
जवाब: मैंने बोला ना, यह जाति वाला मामला नहीं है। देखो मीनाक्षी जी, आपके नाम के पीछे भी जोशी लगा है, इसलिए लोग आपको भी लपेटे में लेंगे फिर इसमें। सनातन धर्म में कोई जाति से जन्म की व्यवस्था ही नहीं है। कहते हैं- जन्म से सब समान होते हैं। संस्कारों से, कर्म से, गुण-कर्म-स्वभाव से, अपने कर्म से, आचरण से उनको वर्ण-व्यवस्था में रखा गया है। कुछ लोग कहते हैं कि सिर पर टोपी पहन लो, मूछ कटवा लो और स्वर्ग में चले जाओगे। कुछ लोग कहते हैं- क्राॅस पहन लो, स्वर्ग में चले जाओगे। यह प्रार्थना कर लो, यह आयतें पढ़ लो, यह नमाज पढ़ लो, या ऐसे कर लो। हमारे यहाँ पर कर्मफल व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, कर्म के आधार पर, आचरण के आधार पर, स्वर्ग-नर्क इसी धरती पर माना गया है। कोई दूसरे-तीसरे लोक में नहीं माना गया है।
तो यह जो मैंने कहा ना कुछ और अविवेकी लोग अपने अविवेक के कारण यदि सनातन धर्म को कुदृष्टि से देखते हैं, पक्षपातपूर्ण दृष्टि से देखते हैं, उस पर लांछन लगाते हैं, यह तो उनका बौद्धिक दिवालियापन है और दुर्भाग्य से पिछले करीब 50 सालों से ब्राह्मणों को लेकर, संन्यासियों को लेकर, सनातन धर्म को लेकर, जो मूवीस बनी हैं, जो अलग-अलग सीरियल्स बने हैं, यह जो पूरा सोशल मीडिया और तमाम तरह के मीडिया में, बहुत बड़ा छल और प्रपंच रचा गया, षड्यंत्र रचा गया, वह गलत है।
तो एक वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, मैंने इसका एक उदाहरण दिया- स्वामी रामदेव को देखो, पतंजलि योगपीठ को देखो, महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती को देखो। आंशिक रूप से हो सकता है किसी महापुरुष ने किसी समय, किसी बात से जैसे- महर्षि दयानंद ने जड़ता से बहार निकालने के लिए मूर्ति पूजा का विरोध किया, लेकिन उन्होंने कभी सगुण, साकार, निर्गुण, निराकार जो हमारी उपासना पद्धति है उनका विरोध नहीं किया। कुछ अविवेकी लोग, मैं बार-बार कहूँगा, मैं कठोर शब्द नहीं बोलना चाहता उनको, मूर्ख हैं या उनको दूसरा या कोई तीसरा शब्द, कोई उपमा मैं नहीं देना चाहता। थोड़ा विवेकी बनकर वैज्ञानिक दृश्टि से, साइंटिफिक टेंपरामेंट के साथ अपने सनातन धर्म को देखें।
प्रश्न: नहीं, आप वैज्ञानिक दृष्टि से देखने की बात कह रहे हैं लेकिन अभी बहुत चर्चा में जो हैं, धीरेन्द्र शास्त्री जी उनके बारे में यह कहा जा रहा है की वह बड़े ही वैज्ञानिक दृष्टि से छल भी कर रहे हैं, प्रपंच भी कर रहे हैं। उन्होंने एक मायाजाल रच दिया है, जिसकी वजह से लोगों को यह लगता है की वह चमत्कारी हैं। अब वैज्ञानिक दृष्टि से हम उन्हें समझें, या हम समझें की उनके अंदर कोई सिद्धि है?
जवाब: देखिये व्यक्ति केंद्रित बातें आज हम न करें मिनाक्षी जी। अभी हम इतनी बड़ी बातें कर रहे थे। मैं उनको भी व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ। आचरण से, वाणी से, व्यवहार से, स्वभाव से, वह भी कोई प्रपंची आदमी मुझे नहीं दिखे। यह अलग बात है, अलग-अलग व्यक्तियों को, अलग तरह से देखने का दृष्टिकोण किसी का हो सकता है। लेकिन एक बात मैं आपसे कहना चाहता हूँ, किसी भी व्यक्ति के ऊपर मत जाइए। किस कालखंड में, किस समय, कैसी सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक परस्थितियाँ रही? कब किसी व्यक्ति ने क्या किया? किसी राजा ने क्या किया? किस सो काॅल्ड ब्राह्मण ने, सो काॅल्ड क्षत्रिय ने, सो काॅल्ड वैश्य ने, सो काॅल्ड शूद्र ने किस समय, कब क्या किया? उनके ऊपर मत जाइए। मैं वापस आ रहा हूँ, सनातन सत्यों के ऊपर हम बातचीत कर रहे हैं और जहाँ तक यह आध्यात्मिक जगत में दृष्ट और अदृश्य सत्यों की बात है मैं वह पहले ही कह चुका हूँ मिनाक्षी जी कि जितना दृष्ट है उतना ही अदृश्य भी है, अमूर्त भी है और उन मूर्त-अमूर्त सत्यों को कोई कितना जानता है और उसमें किसकी कितनी पहुँच है, उसकी आप अलग से परीक्षा कीजिए। लेकिन आज मैं इसी बात के ऊपर, इसी बात की पूर्णाहुति करना चाहूँगा।
मैं पूरी दुनिया के सामने पूरे तर्क, तथ्य, युक्ति प्रमाण के साथ साइंटिफिक टेंपरामेंट के साथ इस बात को कहना चाहूँगा कि सनातन धर्म को व्यक्तियों पर मत देखिए। आप कालखंडों में बाँटकर, किसी राजा-महाराजा के साथ जोड़कर, किसी एक व्यक्ति विशेष चाहे किसी भी कालखंड में पैदा हुआ हो, चाहे किसी भी भाषा में, किसी भी मत, पंथ, संप्रदाय में किसी भी वर्ग में पैदा हुआ हो, उस पर सनातन धर्म की कसौटी को मत कसिए। सनातन मूल्यों के आधार पर सनातन धर्म को देखिए और व्यक्तिगत दोषों को, गुणों को, आचरणों को देखकर सनातन धर्म को लांछित मत कीजिए।
Related Posts
Latest News
एजुकेशन फार लीडरशिप का शंखनाद
08 Dec 2024 15:59:36
राष्ट्रभक्त बुद्धिजीवियों को विश्व नेतृत्व के लिए तैयार करने की योजना -
पतंजलि विश्वविद्यालय के विश्वस्तरीय वृहद सभागार में आयोजित...