पतंजलि अनुसंधान संस्थान में ‘कालगणना के आधार पर इतिहास का पुनर्विवेचन’ विषय पर 1 दिवसीय कार्यशाला
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हरिद्वार। पतंजलि अनुसंधान संस्थान में ‘कालगणना के आधार पर इतिहास का पुनर्विवेचन’ विषय पर 1 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। जिसमें मुख्यातिथि इतिहास पुनर्लेखन समिति, उत्तर प्रदेश सरकार के सदस्य, डा.चन्द्रशेखर शास्त्री जी रहे। उन्होंने ‘मानव सभ्यता की प्राचीनता, भाषा और ताम्रपत्रों के प्रमाण’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि पिछली कुछ शताब्दियों में लम्बे कालखंड के इतिहास के तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है। वर्तमान समय की आवश्यकता है कि इतिहास की पुनर्विवेचना कर इसमें यथोचित संशोधन किया जाए। प.पू.आचार्य जी महाराज ने कहा कि किसी भी देश का इतिहास उसकी सभ्यता, संस्कृति, उत्कृष्टता व भव्यता को प्रदर्शित करने का माध्यम है। प्राचीन अथवा विगतकाल की घटनाओं को इतिहास में संजोकर भविष्य में उसकी मिसाल दी जाती है। किन्तु गौरों के शासनकाल में अंग्रेजी हुकमरानों तथा मुगलकाल में मुगल शासकों का निरर्थक गुणगान किया गया है। जबकि देश के क्रांतिकारियों, बलिदानियों तथा वीर-वीरांगनाओं के त्याग, बलिदान व समर्पण को इतिहास में कहीं स्थान ही नहीं दिया गया। यहाँ तक की प्राचीन इतिहास से सम्बन्धित स्थलों व स्मारकों व उनके अभिलेखीकरण को बड़ी चतुराई से बदलने का प्रयास किया गया।
कार्यक्रम में डाॅ. राजा जितेन्द्र कुमार सिंह ने ‘कालगणना के आधार पर पुराणेतिहास के वंशानुक्रम की प्राचीनता’ पर प्रकाश डाला, आईपीएस सेवानिवृत्त अतिरिक्त महानिदेशक, डा. अरुण उपाध्याय ने ‘वेद से लिपि की उत्पत्ति तथा वर्गीकरण अक्षर रूपों का काल निर्णय’ विषय पर चर्चा की।
सत्र में फार्मर डायरेक्टर, एएसआई, डा. धर्मवीर शर्मा ने ‘प्री-हिस्टोरिक आर्कियोलाजिकल एविडेंस एंड क्रोनोलाजी आफ इंडिया हिस्ट्री’ विषय पर ज्ञानवर्धन किया। प्रो. एंड हेड डिपार्टमेंट आफ हिस्ट्री, सेवानिवृत्त, एनएएस कालेज, मेरठ के डा. देवेश शर्मा ने ‘कल्चरल इंटिग्रेशन इन इंडिया’, दार्शनिक-निबंधकार, डायरेक्टर रिसर्च सेन्टर, प्रताप गौरव केंद्र उदयपुर के डा. विवेक भटनागर ने ‘भारतीय इतिहास लेखन की परम्परा में पुरातात्विक खोज का प्रभाव’ विषय पर अपने विचार साझा किए।
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