लिवर रोगों में गिलोय की उपयोगिता को अब यू.के. ने भी माना
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उपलब्धियाँ : आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने राॅयल फार्मास्यूटिकल सोसाइटी आफ ग्रेट ब्रिटेन के प्रसिद्ध रिसर्च जर्नल ‘जर्नल ऑफ़ फार्मेसी एण्ड फार्माकोलाजी’ में प्रमुखता से प्रकाशित किया शोधपत्र
हरिद्वार। गिलोय (Tinospora cordifolia) के हेपटोप्रोटेक्टिव (लिवर को स्वस्थ रखने की क्षमता) और अन्य लाभकारी प्रभाव को अब यूनाइटिड किंगडम ने भी स्वीकार किया है जिसे रायल फार्मास्यूटिकल सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन (Royal Pharmaceutical Society of Great Britain) के प्रसिद्ध रिसर्च जर्नल ‘जर्नल आफ फार्मेसी एण्ड फार्माकोलाजी (Journal of Pharmacy and Pharmacology)’ में आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित किया है।
यू.के. के जर्नल आफ फार्मेसी एण्ड फार्माकोलाजी ने स्वीकार किया है कि गिलोय पर अनुसंधान में पाया कि यह लिवर को स्वस्थ रखने के साथ शरीर की कोशिकाओं का क्षरण रोकने तथा लिवर को सुरक्षा प्रदान करने में सहायक है। साथ ही गिलोय शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि करता है। गिलोय के प्रयोग को दैनन्दिन (खाद्य के रूप में) प्रयोग करके अनेक रोगों में लाभ प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि गिलोय का प्रयोग लिवर को सुरक्षा प्रदान करने वाले पूरक खाद्य के रूप में किया जा सकता है। जिस अनुसंधान का सम्पूर्ण विवरण https://doi-org/10-1093/jpp/rgae013 से प्राप्त किया जा सकता है।
इस अवसर पर प.पूज्य आचार्य जी महाराज ने बताया कि गिलोय को परंपरागत रूप से रक्त शोधन व रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि के लिए प्राचीनकाल से ही प्रयोग किया जाता था। गिलोय एक हेपेटोप्रोटेक्टिव एजेंट है। अनुसंधान द्वारा इसकी क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए CCl4 माडल का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इसके हेपेटोप्रोटेक्टिव प्रभावों का श्रेय, एल्कलाइड्स (बर्बेरिन, पामेटाइन और जेट्रोर्रिजिन) और सिनापिक एसिड को दिया जा सकता है। बर्बेरिन TNF-& द्वारा ट्रिगर किए गए, प्रिनफ्रलेमेट्री कैस्केड को रोककर सूजन को कम करता है और iNOS को रोककर नाइट्रोसेटिव तनाव को कम करता है। गिलोय कैंसररोधी, सूजनरोधी, रोगाणुरोधी, एंटीआक्सीडेंट और अन्य गतिविधियाँ भी प्रदर्शित करता है। गिलोय को रासायनिक-मध्यस्थ हेपेटोटाक्सिसिटी के इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले कई पालीहर्बल फार्मूलेशन में एक सक्रिय औषधीय घटक पाया गया है।
प.पूज्य आचार्य जी महाराज ने कहा कि आयुर्वेद को कुलचने का भरसक प्रयास किया गया किन्तु पतंजलि ने सदैव आयुर्वेद को गौरव प्रदान किया है। कोरोनाकाल में गिलोय को लेकर भ्रांति पैदा करने का प्रयास किया गया कि गिलोय के अधिक सेवन से लिवर पर दुष्प्रभाव पड़ता है। किन्तु पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गिलोय पर अनुसंधान कर उसे एविडेंस के साथ प्रस्तुत किया। आचार्य जी ने कहा कि यह भी प्रासंगिक है कि कोरोना के खिलाफ प्रमुख औषधि कोरोनिल का एक प्रमुख घटक गिलोय है। पतंजलि के प्रयासों से आज दुनियाभर के वैज्ञानिक आयुर्वेद का लोहा मान रहे हैं। जय विज्ञान, जय आयुर्वेद, जय पतंजलि।
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https://doi.org/10.1093/jpp/rgae013
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