यज्ञ/हवन पर्यावरण स्वच्छता का आयुर्वेदिक उपाय

यज्ञ वातावरण को शुद्ध करने का सुरक्षित व पर्यावरण के अनुकूल उपाय....

यज्ञ/हवन पर्यावरण स्वच्छता का आयुर्वेदिक उपाय

   हरिद्वार। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक सरल अध्ययन के माध्यम से पर्यावरण में मौजूद विभिन्न रोगजनक बैक्टीरिया और कवकों पर यज्ञ/हवन के रोगाणुरोधी प्रभावों को प्रमाणित किया है। इस नवीन अनुसंधान के अनुसार हवन/यज्ञ वातावरण को शुद्ध करने का सुरक्षित, व पर्यावरण के अनुकूल उपाय हो सकता है। साथ ही हवन Microbial Pathogens जैसे बैक्टीरिया, कवक और वायरस के कारण होने वाली संक्रामक बीमारियों के विरुद्ध प्रभावी भी हो सकता है। यह अध्ययन एक प्रतिष्ठित अमेरिकी वैज्ञानिक जर्नल, Journal of Evidence & Based Integrative Medicine में प्रकाशित हुआ है| इस अवसर पर पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि यज्ञ/हवन की प्राचीन प्रथा के अनुसार पर्यावरण को शुद्ध करने का एक तरीका है, उसका यह पहला वैज्ञानिक प्रमाण है। उन्होंने इन वैज्ञानिक निष्कर्षों को नियमित पर्यावरण परिशोधन प्रोटोकाॅल के रूप में यज्ञ/हवन आयोजित करने की प्राचीन भारतीय दैनिक प्रथा से जोड़ा। पूज्य आचार्य जी ने इस बात पर जोर दिया है कि यज्ञ/हवन न केवल मानसिक शांति प्राप्त करने का अपितु समग्र शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त करने का एक आध्यात्मिक तरीका भी है।
    पतंजलि अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डाॅ. अनुराग वाष्र्णेय द्वारा साझा किए गए विवरण के अनुसार, विषघ्न धूप नामक हवन सामग्री के धूम्र से Pathogenic microbes को उपचारित किया और उनके वृद्धि पर धूम्र के प्रभाव का व्यापक अध्ययन किया गया। अध्ययन किए गए च्ंजीवहमदे में वे रोगाणु शामिल हैं जो आमतौर पर दूषित वातावरण में मौजूद होते हैं, और त्वचा, फेफड़े, पेट और मूत्रजननांगों के संक्रमित होने का कारण बनते हैं। इन Pathogens की वृद्धि को विषघ्न धूप के धूम्र के उपचार से बाधित पाया गया। डाॅ.वाष्र्णेय ने बताया कि एक उन्नत तकनीक स्कैनिंग इलेक्ट्राॅन माइक्रोस्कोपी के माध्यम से गहन जांच करने पर पाया गया कि विषघ्न धूप का धूम्र वास्तव में नैनोस्केल कणों से युक्त है। एक अन्य अत्याधुनिक विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान तकनीक, गैस क्रोमैटोग्राफी युग्मित मास स्पेक्ट्रोमेट्री (जीएस-एमएस) से स्पष्ट हुआ कि ये कण वास्तव में एंटी-माइक्रोबियल फाइटोकंपाउंड्स से परिपूर्ण थे, जैसे कि p-Cynoaniline, Eucalyptol, Drimenol और endo-Boreneol आदि। पतंजलि के वैज्ञानिकों ने पर्यावरण विसंक्रमण में यज्ञ/हवन की व्यावहारिकता को भी सत्यापित किया। उन्होंने देखा कि पहले से संक्रमित कमरों में विषघ्न धूप का यज्ञ/हवन करने से माइक्रोबियल बोझ में काफी हद तक कमी आई है। उन्होंने यह भी आंकलन किया कि विषघ्न धूप मानव फेफड़ों को कैसे प्रभावित करती है तथा इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं पड़ता। मानव फेफड़ों की कोशिकाओं का उपयोग करके किए गए प्रयोगों में, यह देखा गया कि विषघ्न धूप फेफड़ों की कोशिकाओं के लिए पूर्ण सुरक्षित है। डाॅ. वाष्र्णेय ने बताया कि ये अवलोकन न केवल आयुर्वेद के समृद्ध वैज्ञानिक तर्क की पुष्टि करते हैं, बल्कि वातावरण संरक्षण के एक स्थायी, पर्यावरण के अनुकूल, गैर-विषाक्त विकल्प के रूप में यज्ञ/हवन को विकसित करने की एक पूरी नई संभावना को भी खोलते हैं। परम पूज्य आचार्य जी का मानना है कि पतंजलि अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए इस अध्ययन की विशिष्टता अनुसंधान दल के वैज्ञानिक कौशल और आविष्कार से आई है, जो प्रयोगों के डिजाइन और उनके समग्र निष्पादन में परिलक्षित होती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह उपलब्धि उस उत्कृष्टता का भी उदाहरण है जिसमें आधुनिक और प्राचीन ज्ञान को व्यवस्थित कर प्राप्त किया जा सकता है। आचार्य जी का मानना है कि पारंपरिक आयुर्वेदिक ज्ञानकोष की वैश्विक मान्यता के लिए इस तरह के और अधिक विशिष्ट शोध की आवश्यकता है। उन्होंने उल्लेख किया कि पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक इस चुनौती के लिए पूरे मनोयोग से तैयार हैं और हमें विश्वास है कि आने वाले समय में ऐसे सामूहिक प्रयासों के सकारात्मक परिणाम आयेंगे।

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