पूज्य आचार्य श्री द्वारा युवाओं के लिए सफलता के सूत्र
पूज्य आचार्य श्री द्वारा युवाओं के लिए सफलता के सूत्र केवल शरीर बल, केवल बुद्धि बल, केलव निष्ठा बल, केवल धन बल या केवल सम्मान आदि के पीछे युवा पागल होकर न दौड़ें अपितु शरीर को पूर्ण बलिष्ठ, पूर्ण स्वस्थ बनाकर अपने शरीर, इन्द्रियों, मन, विचार, भावनाओं एवं ऊर्जा पर नियंत्रण रखते हुए सही दिशा में अपने सामथ्र्य का उपयोग करें। एक क्षण के लिए अशुभ का, विकारों, दोषों, दुर्बलताओं, आलस्य, प्रमाद, आत्मग्लानि, निराशा, नकारात्मकता, क्लेशों का स्वागत नहीं करना। विजय, कामयाबी, सफलता या जीवन में बड़ी उपलब्धि- ये प्रत्येक…
पूज्य आचार्य श्री द्वारा युवाओं के लिए सफलता के सूत्र
- केवल शरीर बल, केवल बुद्धि बल, केलव निष्ठा बल, केवल धन बल या केवल सम्मान आदि के पीछे युवा पागल होकर न दौड़ें अपितु शरीर को पूर्ण बलिष्ठ, पूर्ण स्वस्थ बनाकर अपने शरीर, इन्द्रियों, मन, विचार, भावनाओं एवं ऊर्जा पर नियंत्रण रखते हुए सही दिशा में अपने सामथ्र्य का उपयोग करें।
- एक क्षण के लिए अशुभ का, विकारों, दोषों, दुर्बलताओं, आलस्य, प्रमाद, आत्मग्लानि, निराशा, नकारात्मकता, क्लेशों का स्वागत नहीं करना।
विजय, कामयाबी, सफलता या जीवन में बड़ी उपलब्धि- ये प्रत्येक युवा की सबसे बड़ी प्राथमिकता या मांग होती है और इसी के इर्द-गिर्द उसके जीवन का पूरा ताना-बाना वो बुनता है। इसी संदर्भ में कुछ बड़ें बिन्दुओं को क्रमशः प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं-
1. माता-पिता, परिजन एवं गुरुजन इस प्रकार से बच्चों की परवरिश करें कि बच्चों, विद्यार्थियों या युवाओं में सुख, सफलता या विजय पाने की एक संतुलित, समग्र, स्थाई, न्यायपूर्ण व अहिंसक दृष्टि व कृति विकसित हो। केवल शरीर बल, केवल बुद्धि बल, केवल निष्ठा बल, केवल धन बल या केवल धन बल या केवल सम्मान आदि के पीछे युवा पागल होकर न दौड़ें अपितु शरीर को पूर्ण बलिष्ठ, पूर्ण स्वस्थ बनाकर अपने शरीर, इन्द्रियों, मन, विचार, भावनाओं एवं ऊर्जा पर नियन्त्रण रखते हुए सही दिशा में अपने सामथ्र्य का उपयोग करें। किसी भी एक या एक से अधिक विषयों में ज्ञान व कुशलता की पराकाष्ठा अर्जित करें। 8 से 18 घंटे पुरुषार्थ की पराकाष्ठा में जीने का अभ्यास करें। लक्ष्य को प्राप्त किए बिना बीच में कार्य को नहीं छोड़ें क्योंकि अधिकांश लोग तो बड़ा कार्य करने का प्रथम तो साहस ही नहीं जुटा पाते, कुछ लोग प्रारम्भ तो कर देते है लेकिन बड़े कार्यों में चैलेंज, प्रोब्लम्स या विघ्न- बाधाएँ भी बड़ी ही होती हैं। उनका सामना करके हर चुनौति, समस्या, संकट, विघ्न- बाधा या परिस्थिति को कैसे सफलता या अवसर में बदलना है, यह विवेक, ज्ञान, कला, कुशलता, साहस, पराक्रम, शौर्य व धर्य युवाओं में नहीं होने से उनके सपने टूट जाते हैं तथा वे बड़े कार्य करने से वंचित रह जाते हैं।
2. अपने सामथ्र्य को समृद्धि में बदलने की कला व कुशलता। शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक, कत्र्तृव्य, नेतृत्व, वक्तृत्व, कवित्व, लेखन, अनुसंधान, अभिनय, संगीत, कला, वाद्य, नृत्य, अनुवाद, फोटोग्राफी, विडियोग्राफी, फैशन, संवाद, साइंस आदि विविध सामथ्र्य, मेडिकल इंजिनियरिंग मैनेजमेंट, पोलिटिक्स, आतिथ्य, ज्यूडिश्यली, मीडिया आदि के विशेष ज्ञान, विज्ञान व तकनीकि को वैल्थ, ब्रांड, उद्योग, संस्था, संगठन, पार्टी, व्यापार, सर्विस या चैरिटी आदि में कैसे रूपान्तरित (कन्वर्ट) करके समृद्धि, सफलता, उपलब्धि या विजय का नया इतिहास या कीर्तिमान बनाने की प्रतिभा होनी चाहिए। अपने वैयक्तिक सामथ्र्य के साथ-साथ अपने कुल, वंश, परम्परा से प्राप्त सामथ्र्य, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक व राजनैतिक सामथ्र्य, सम्बन्धों, विश्वास, ऐश्वर्य या पुण्य को समृद्धि में बदलने की कुशलता होनी चाहिए। मिट्टी पानी, जल, जंगल, जमीन, जड़ी-बूटी आदि जो भी अपने पास साधन हैं, उसे भी समृद्धि में बदलने की कला, कुशलता या योग्यता हो तो सफलता का नया कीर्तिमान बना सकते हैं। मिट्टी से मूर्ति पात्र व खिलौने आदि, जल से भी जलीय खेती व पेय जलादि, जमीन पर वैज्ञानिक कृषि व डेयरी आदि के उद्योग लगाकर हम लीक से हटकर कुछ नया कर सकते हैं और लोग कर रहे हैं। नये बाजार, आधार व व्यापार बन रहे हैं।
3. प्रकृति या प्रारब्ध से वरदान के रूप में प्राप्त सहज सामथ्र्य को, सही आयु, सही समय पर पहचानकर उसको पूरा विकसित करके, किसी भी क्षेत्र, स्थान, देश में या सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक आदि क्षेत्र में अथवा कृषि, पशुपालन, मधुमक्खी पालन व चिकित्सा आदि में जहाँ नई संभावना आकाश, अवकाश या अवसर हो तो उसे खोजना उसका पूर्वापर मूल्यांकन करके एक व्यवस्थित व्यवसायिक योजना बनाकर उसे व्यवहारिक रूप से क्रियान्वित करना।
4. योग, कर्मयोग, परस्पर सहयोग, उद्योग (उद्यमिता) सही लोगों की खोज करके उनको बड़े उद्देश्य के लिए साथ देने के लिए सहमत करना व निरन्तर उनका हाथ साथ में बने रहना, सामूहिक ईमानदारी कत्र्तव्यनिष्ठा व ध्येय निष्ठा के साथ बड़े कार्य की प्रतिष्ठा से ही बड़ी सफलता मिलती है।
5. या तो खुद किसी भी क्षेत्र में कोई बड़ा कार्य खड़ा करें या किसी बड़ी संस्था, संगठन, समाज या विराट् महायज्ञ में आहुति देकर जोब, बिजनेस, पोलिटिक्स या चैरिटी करके भी बड़े कार्य, बड़ी सेवा में बड़ा योगदान, बड़ी भूमिका या बड़ी सफलता अथवा उपलब्धि जीवन में हासिल कर सकते हैं।
6. संसार में बहुत बड़े कार्य, सेवा या ध्येय की सिद्धि के लिए कुछ मूलभूत सिद्धान्त हैं, उनका पूरी प्रामाणिकता से पालन करना जैसे-विधि व निषेध की या मर्यादा की एक लक्ष्मण रेखा खींचकर रखना और कभी भी उसका अतिक्रमण नहीं करना। भगवान् के विधान व देश के विधान, संविधान या कानून को एक बार भी नहीं तोड़ना। एक क्षण के लिए अशुभ का, विकारों, दोषों, दुर्बलताओं, आलस्य, प्रसाद, आत्मग्लानि, निराशा, नकारात्मकता, क्लेशों, का स्वागत नहीं करना। स्थूल दोष एक बार भी न हो तथा सूक्ष्म दोष मन, विचार, भाव या संस्कार के स्तर पर हो भी जाएं तो उनकी पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए 24 घंटा प्रतिपल जागरूकता रहना।
7. दृष्टि व कृति में समग्रता, संतुलन, दूरदर्शिता, पारदर्शिता, न्याय, समानता, एकता, अहिंसा, सत्य एवं सात्त्विकता रखना। अज्ञान, अहंकार विलासिता एवं लालच आदि में पड़कर आत्मघाती विनाश को आमंत्रण नहीं देना। प्राथमिकताओं के निर्धारण, बड़े निर्णयों एवं आत्म मूल्यांकन में चूक नहीं करना। वज्र से भी ज्यादा कठोर तथा फूल से भी अधिक कोमल रहकर महान् पराक्रमी व अति विनम्र होकर निरन्तर सुधार, संशोधन, परिवर्तन, आंदोलन, सृजन व विस्तार करते रहना। संकट, चुनौति, संघर्ष एवं अत्यंत प्रतिकूल अवस्था में भी धर्य नहीं खोना। आहार, विचार, वाणी, व्यवहार, स्वभाव व आचरण के प्रति पूर्ण जागरूक रहना। सदा उच्च चेतना में जीना। अपने सामने सदा महापुरुषों का प्रेरक आदर्श रखना। अपने मूल स्वरूप में रहकर अपने स्वकर्म, स्वधर्म, मानवधर्म, राष्ट्रधर्म व विश्वधर्म को प्रामाणिकता से निभाना।