संन्यास जीवन की पूर्णता की यात्रा: स्वामी जी

संन्यास जीवन की पूर्णता की यात्रा: स्वामी जी

92 सेवाव्रतियों ने ली संन्यास की दीक्षा, इनमें 51 ब्रह्मचारी और 41 ब्रह्मचारिणी शामिल हरिद्वार। योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि संन्यासी होना दुनिया का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व और मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। ब्रह्मचर्य से सीधे संन्यास का वरण कर लेना जीवन की पूर्णता की यात्रा है। योगर्षि स्वामी जी महाराज संन्यास दीक्षा कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। पतंजलि योगपीठ के ऋषिग्राम और गंगातट के वी.आइ.पी. घाट पर आयोजित इस कार्यक्रम में 92 सेवाव्रतियों को विधि-विधन से संन्यास की दीक्षा दी गईं। इनमें 41…

92 सेवाव्रतियों ने ली संन्यास की दीक्षा, इनमें 51 ब्रह्मचारी और 41 ब्रह्मचारिणी शामिल

हरिद्वार। योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि संन्यासी होना दुनिया का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व और मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। ब्रह्मचर्य से सीधे संन्यास का वरण कर लेना जीवन की पूर्णता की यात्रा है। योगर्षि स्वामी जी महाराज संन्यास दीक्षा कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। पतंजलि योगपीठ के ऋषिग्राम और गंगातट के वी.आइ.पी. घाट पर आयोजित इस कार्यक्रम में 92 सेवाव्रतियों को विधि-विधन से संन्यास की दीक्षा दी गईं। इनमें 41 ब्रह्मचारिणी शामिल है।

पतंजलि योगपीठ की तरपफ से पहली बार इस तरह का आयोजन किया गया, जो दो चरणों में पूरा कराया गया। सुबह छह से आठ बजे तक पतंजलि के ऋषिग्राम में यज्ञ अनुष्ठान और मुंडन संस्कार हुए। इसके बाद वीआइपी घाट पर संन्यास के अन्य विधन सम्पन्न कराए गए। गंगा स्वच्छता अभियान को देखते हुए वीआईपी घाट पर सांकेतिक तौर पर ही मुंडन की रस्म पूरी कर दीक्षित संन्यासियों को भगवा वस्त्रा धरण कराया गया। यह दृश्य देखघाट के दूसरे छोर पर मौजूद सेवाव्रतियों के अभिभावकों में कुछ की आंखे भर आई।

इस मौके पर श्रद्धेय स्वामी जी महाराज ने कहा कि हमारे पूर्वज ऋषि-ऋषिकाओं की पवित्रा सनातन, गरिमामयी और वरणीय संन्यास परम्परा आध्यात्मिक व्यक्ति, आध्यात्मिक परिवार, आध्यात्मिक समाज और आध्यात्मिक भारत बनाने का आधर हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि जिस खानदान में एक भी व्यक्ति संन्यासी हो जाता है तो पूरा कुल पवित्रा हो जाता है और उसके संन्यास के प्रताप से पूरी ध्रती पुण्यों से भर जाती है।  उन्होंने कहा कि पतंजलि योगपीठ ने पिछले 25 वर्षों से माँ भारती की सेवा में अनेक प्रयास किए गए। वैदिक ऋषि ज्ञान परम्परा के प्रकल्प के रूप में वैदिक गुरुकुलम् और वैदिक कन्या गुरुकुलम् की स्थापना इन्हीं में एक है। इनमें दिव्य आत्माएं ऋषि ज्ञान परम्परा को आत्मसात कर रही हैं। उनका लक्ष्य समष्टि को दिव्यता से भर देना और बदले में अपने लिए कुछ ना चाहना अर्थात् ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधे संन्यास आश्रम का वरण करना है। श्रद्धेय स्वामी जी महाराज ने 2050 तक भारत को विश्व की आध्यात्मिक और आर्थिक महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठापित करने का आह्नान किया। पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा कि संन्यास संस्कृति के जागरण का प्रारम्भ है। सही मायने में संन्यासी का अर्थ सृजन है। दीदी माँसाध्वी ऋतम्भरा ने दीक्षा लेने वालों को आशीष दिया और संन्यास को उनके जीवन का सबसे बड़ा संकल्प बताया। भारत माता मंदिर के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरी जी महाराज ने कहा कि यह गौरव का विषय है कि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज के संकल्प मूर्तरूप ले रहे हैं।

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