आयुर्वेद की विजय यात्रा, विजय गाथा
योग-आयुर्वेद को जन-जन तक पहुंचाने की यात्रा में संघर्ष, प्रयास और अनुसंधान
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प्राचीनकाल में ही हम सुनते आए हैं कि ‘पहला सुख-निरोगी काया’। संसार की कितनी भी ऊँचाइयों को हमें पाना हो, समुद्र की गहराइयों को नापना हो चाहे आसमान की ऊँचाइयों को छूना हो, जीवन में कितनी भी उन्नति या समृद्धि की ओर हमें बढ़ना हो, यदि सेहत (सुस्वास्थ्य) है तो सब कुछ है। जब व्यक्ति बीमार हो जाता है तो स्वयं ही नहीं अपितु सम्पूर्ण परिवार परेशान हो जाता है। साधन के साथ-साथ बहुत समय भी उसमें चला जाता है। इसके लिए हमारा आयुर्वेद हमेशा से कहता रहा है-
स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं। -(चरक संहिता, 30.26)
सुस्वास्थ्य है तो सब कुछ है- हमको ये ध्यान रखना है कि ये जो प्रिवेंशन है कि हम रोगी ही न हों, हमें उन उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिए और वह उपाय आयुर्वेद व योग के द्वारा ही संभव है। आज मा.प्रधानमंत्री जी के पुरुषार्थ से पूरे विश्व के लोग ‘इंटरनेशनल योगा डे’ के रूप में योग को मान्यता प्रदान करके योग का आनंद और योग का लाभ उठा रहे हैं। प.पू.स्वामी जी महाराज ने आज योग को घर-घर तक, जन-जन तक पहुँचाया है।
पूरे विश्व में आयुर्वेद की प्रतिष्ठापना का संकल्प-
विदेशों में जाकर आयुर्वेद अभी तक आयुर्वेद के रूप में प्रतिष्ठापित नहीं हो पाया है। कहीं न कहीं वह हर्बल मेडिसिन, फूड सप्लिमेंट के रूप में जाना जाता है। अज्ञानता को दूर करने के लिए पतंजलि ने बहुत सुंदर कार्य किया। हमारी साइंस आॅफ आयुर्वेदा जिसे हम ‘आयुर्वेद सिद्धांत रहस्य’ बोलते हैं आज दुनिया की 70 भाषाओं में वह पुस्तक प्रकाशित हो रही है। और हमें यह कहते हुए प्रसन्नता है कि संबंधित भाषा के लोग अपने देश में इस पुस्तक को छपवाकर अपने देश में वितरित कर रहे हैं।
देश-धर्म की सीमाओं से परे है आयुर्वेद-
सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात तो यह है कि दुनिया की सब भाषाओं में ‘आयुर्वेद सिद्धांत रहस्य’ प्रकाशित हो रही थी किंतु चाइना की भाषा में यह पुस्तक छपवाने के लिए बहुत सी क्वाइरीज और प्रश्नों का सामना हमें करना पड़ा क्योंकि चाइना वाले अपनी पद्धति के प्रति थोड़ा आग्रही होते हैं, लेकिन वहाँ भी यह पुस्तक प्रकाशित हुई और उर्दू में पाकिस्तान में भी यह पुस्तक छपी। यानि आयुर्वेद देश की सीमाओं को भी जोडने का कार्य करता है।
आयुर्वेद के विद्यार्थियों को ‘विश्व जड़ी बूटी का इतिहास’ पढ़ाए जाने की आवश्यकता-
जब आयुर्वेद की बात आती है तो कुछ सामान्य गलतियाँ हम भी करते हैं, आयुर्वेद के प्रबुद्ध व्यक्तियों से भी होती हैं जैसे हम आयुर्वेद के विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं आयुर्वेद का इतिहास। मैं आयुर्वेद के इतिहास को पढ़ाने का विरोधी नहीं हूँ परंतु हमें उन विद्यार्थियों को ‘विश्व जड़ी बूटी का इतिहास’ पढ़ाने की आवश्यकता है। क्योंकि यदि हम बच्चों को वल्र्ड बोटनी बेस्ड मेडिसिन सिस्टम पढ़ाएँगे तो हमें यह पता चलेगा कि आयुर्वेद कहाँ पर खड़ा है।
पैथियों में भेद लेकिन सभी पैथी में प्रथम लक्ष्य रोगी को निरोगी बनाना-
यदि हम सरकार की पाॅलिसी की बात करें तो भारतवर्ष में हम दो धाराओं में रोगों को ठीक करने की बात या रोगी को निरोग करने की बात करते हैं। चाहे वह किसी भी पैथी में प्रेक्टिस कर रहा हो, अंततः हम सबका लक्ष्य तो एक ही है। किसी भी पद्धति के चिकित्सक के पास यदि कोई रोगी आता है तो वह प्रयास करता है कि मुझे इस रोगी को ठीक करना है।
चाइनीज मेडिसिन सिस्टम वाला यूएसए में चाइनीज मेडिसिन सिस्टम को यूएसए में धड़ल्ले से कर सकता है क्योंकि उसकी डिग्री यूएसए में मान्य है परंतु मुझे पीड़ा होती है कि हमारा आयुर्वेद का बीएएमएस/ एमडी यूएसए जाता है तो रोगी को छू भी नहीं सकता, उसे वहाँ सर्टिफिकेट लेना पड़ता है जिसके बाद वह थेरेपिस्ट का काम करता है, उससे पहले वह भी नहीं कर सकता था। उससे हमें कितनी बड़ी हानि हो गई, हमारा देश से बाहर जाने का दरवाजा बंद हो गया। आज हम भी आयुर्वेदिक दवाएँ दुनिया में पहुँचा रहे हैं परंतु हर्बल सप्लीमेंट व फूड सप्लीमेंट के रूप में। यूएस एफडीए के जो प्रोटोकाॅल्स हैं, जो स्टैंडर्स हैं, हम उन्हें पूरा करते हैं।
आयुर्वेद की वैश्विक स्थापना आवश्यक, वल्र्ड हर्बल इंसाइक्लोपीडिया कालजयी ग्रंथ-
वैश्कि स्तर पर आयुर्वेद को आयुर्वेद के रूप में स्थापित करना अभी शेष है। इसके लिए हमने वल्र्ड हर्बल इंसाइक्लोपीडिया के रूप में बड़ा कार्य प्रारंभ किया। यह पतंजलि के द्वारा प्रारंभ किया गया कालजयी कार्य है। पूरी दुनिया में जो पादप जगत है उसमें लगभग 3 लाख 60 हजार प्लांट्स बाॅयोडायवर्सिटी पूरे विश्व में है। पहली बार पतंजलि ने यह चैकलिस्ट बनाने का प्रयास किया कि पूरे विश्व में कितने प्लांट्स हैं जो मेडिशनली प्रयोग किए जा रहे हैं या किए जा सकते हैं। यह काम करते हुए ही हमें पता चला की 1999 में यह कार्य विश्व स्वास्थ्य संगठन (ॅभ्व्) ने भी शुरू किया था, 147 मोनोग्राफ उन्होंने बनाए हैं, 5 वाल्यूम में छोटी-छोटी किताबें छापी गई हैं। बाद में 2010 में ॅभ्व् ने यह कहकर इस कार्य को बंद कर दिया कि ‘यह कार्य तो असंभव जान पड़ता है।’ ॅभ्व् की साइट पर अभी भी आप यह जानकारी देख सकते हैं। पतंजलि ने जब यह कार्य प्रारंभ किया तब हमें पता भी नहीं था कि ॅभ्व् ने यह कार्य प्रारंभ करके बंद भी कर दिया है। किंतु आज हमें यह कहते हुए गर्व होता है कि पतंजलि ने असम्भव को सम्भव करके दिखाया।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पतंजलि अनुसंधान की स्वीकार्यता-
अभी अनुसंधान की बात करें तो कोरोना के ऊपर आयुष मंत्रालय और भारत सरकार के प्रयास से अंतराष्ट्रीय स्तर पर केवल 2 रिसर्च पेपर्स पब्लिश हुए हैं तथा दोनों का रिव्यू पतंजलि से ही हुआ है। हमें इस बात को कहते हुए प्रसन्नता व गर्व की अनुभूति होती है कि पतंजलि ने 28 रिसर्च पेपर्स हाई इम्पैक्ट वाले अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च पेपर्स में पब्लिश किए। कोरोना पर इंडिविजुअल इंस्टीट्यूट के रूप में सबसे ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च पेपर्स पतंजलि ने ही प्रकाशित किए हैं, यह आयुर्वेद की सबसे बड़ी यात्रा, विजय गाथा है।
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