देश के जननायकों की दृष्टि में पतंजलि के सन्यास दीक्षा महोत्सव का महत्व
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श्री अमित शाह (केंद्रीय गृहमंत्री)
भाइयों पूज्य स्वामी जी महाराज ने अपने वक्तव्य में कहा कि संन्यासियों के लिए मैं आशीर्वचन कहूँ। स्वामी जी, यदि मैं 10 दिन पहले आया होता तो आयु के हिसाब से जरूर आशीर्वाद देता किन्तु आज मैं इनसे आशीर्वाद की कामना करता हूँ कि यह देश आजादी की शताब्दी मनाए तो समग्र विश्व में हर एक क्षेत्र में हमारा देश सर्वप्रथम हो। हमारे यहाँ जो संन्यास लेता है, जो भगवा धारण करता है उसकी आयु उसकी विद्वता, उसके उद्देश्य कुछ नहीं देखते, उसको प्रणाम करते हैं। मैं आप सभी को प्रणाम कर अपनी बात की शुरुआत करना चाहता हूँ।
आज मैं चैथी बार पतंजलि के प्रांगण में आया हूँ। हर बार मैं यहाँ से एक नई ऊर्जा नई चेतना और नई आशा लेकर वापस गया हूँ। इस बार भी समय की थोड़ी कठिनाई थी फिर भी स्वामी जी और आचार्य जी से पतंजलि की समग्र गतिविधियों का ब्यौरा लिया। मैं आज मन में शांति और संतोष लेकर जा रहा हूँ कि पतंजलि परिवार आने वाले दिनों में कई क्षेत्रों में देश के पुनरुद्धार का काम करेगा, देश के पुनर्निर्माण का काम करेगा।
योग आयुर्वेद और स्वदेशी, इन तीनों क्षेत्रों में स्वामी रामदेव जी ने विगत 25 साल में अभूतपूर्व योगदान दिया है। कोई इंस्टिट्यूशन, कोई संस्था जो योगदान ना कर पाई, वह अकेले स्वामी जी ने अपने साथियों के साथ करके दिखाया। योग, आयुर्वेद और स्वदेशी के आंदोलन के साथ-साथ स्वामी जी ने अब शिक्षा पर भी ध्यान दिया है, जिसका मुझे बहुत आनंद है।
आज यहाँ पर भारतीय शिक्षा बोर्ड, पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम् और पतंजलि विश्वविद्यालय के माध्यम से मूल भारतीय परंपरा से हमारे चिर पुरातन ज्ञान को एक नई ऊर्जा मिलने जा रही है, इसका मुझे बहुत-बहुत आनंद है। स्वामी जी का संकल्प 1,00,000 विद्यार्थियों वाला पतंजलि ग्लोबल गुरुकुलम् और पतंजलि ग्लोबल यूनिवर्सिटी स्थापित करना है। स्वामी जी को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं और साधुवाद। हम आपके साथ हैं, ईश्वर आपकी इच्छा को पूर्ण करेगा। आचार्य बालकृष्ण जी को देखकर मैं तो आश्चर्यचकित हूँ। आचार्य बालकृष्ण जी ने आयुर्वेद के परंपरागत ज्ञान को आधुनिक तंत्र परीक्षा की कसौटी पर भी खरा उतारकर, विश्वभर में जो औषधियों की संपदा को सूचीबद्ध करने का एक भगीरथ कार्य किया है। मैंने ढ़ेर सारे चरित्रों में, ढ़ेर सारे काम करने वाले व्यक्तियों को ध्यान से सुना है, पूर्ण तन्मयता के साथ सुना है, मगर जिस तरह से कंप्यूटर बोलता हो आचार्य जी वैसे ही आज मुझे आयुर्वेद के रहस्य समझा रहे थे। मैं आश्चर्यचकित हो गया जब मैंने सुना कि आचार्य जी ने आयुर्वेद में ५०० से ज्यादा रिसर्च पेपर प्रकाशित कराए हैं। दुनिया में किसी भी क्षेत्र में सिद्धि पाने वाले 2 प्रतिशत लोगों में से एक आचार्य बालकृष्ण जी हैं, यह आयुर्वेद के लिए गौरव रखने वाले सभी लोगों के लिए बड़ा आनंद और संतोष का विषय है। जब-जब मैं स्वामी जी को देखता हूँ तो आयुर्वेद और योग चिकित्सा करने वाला एक योगी ही दिखाई पड़ता है, कभी विदेशी मल्टी नेशनल कम्पनियों के खिलाफ लड़ने वाला स्वदेशी का पुरोधा दिखाई पड़ता है, कभी विदेशों में योग का ब्रांड एंबेसडर दिखाई पड़ता है, कभी कालेधन के खिलाफ संघर्ष करने वाला एक संन्यासी दिखाई पड़ता है तो कभी शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा का संपूर्ण भारतीयकरण करने की दिशा में एक संकल्पवान, एक शिक्षाविद् भी दिखाई पड़ता है और वैदिक शिक्षा को फिर से एक बार पुनर्जीवित कर मनुष्य के अंदर बढ़ी हुई एक शक्ति को आकार देना उसको मंच देने का हमारा जो परंपरागत वैदिक शिक्षा का जो ज्ञान है उस को आगे बढ़ाने वाला एक शिक्षाविद भी मैंने देखा। पतंजलि ने योग धर्म, आयुर्वेद धर्म, स्वदेशी धर्म के साथ शिक्षा धर्म को प्रामाणिकता के साथ जोड़ा है। मैं यहाँ से संतोष, आनंद, ऊर्जा व आशा लेकर जा रहा हूँ।
स्वामी जी आज रामनवमी के पवित्र दिन आपने मुझे यहाँ बुलाया, 300 करोड़ की लागत से बने विश्वविद्यालय के भवन का आज मैंने लोकार्पण किया है, इसकी मुझे प्रसन्नता है।
मैंने बालकृष्ण जी को कहा कि आप इतना कार्य सारा करते हैं जैविक कृषि के लिए भी कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा मेरे पास मिट्टी की जाँच के लिए मशीन तैयार है। सिर्फ 10 लाख की लागत से सारे टेस्ट हो जाते हैं। आते-आते मैं मशीन देखकर भी आया। मैंने अभी इसके परीक्षण नहीं देखे हैं, मगर मुझे विश्वास है कि जिस प्रकार का पतंजलि का रिकाॅर्ड है उन सभी मानकों पर आप खरे उतरेंगे। 12 तरह के मापदंड इतने कम खर्चे में पूरा करना बहुत बड़ी बात है। पतंजलि योगपीठ ने करीब एक लाख किसानों को आॅर्गेनिक खेती के साथ जोड़कर पृथ्वी और पर्यावरण की रक्षा तो की ही है, साथ ही निरामय जीवन जीने के लिए सात्विक आहार उपलब्ध कराने का कार्य भी किया है। जैविक आहार से लाखों लोगों को निरामय जीवन जीने का रास्ता भी प्रशस्त किया है। आज यहाँ पर चतुर्वेद पारायण यज्ञ भी समाप्त हुआ। ढाई सौ से ज्यादा संन्यासियों को मैं अपनी आँखों के सामने देख रहा हूँ और मैं आप सभी के चरणों में निवेदन करना चाहता हूँ कि संन्यासी किसी एक भूमि से बंधा नहीं होता, किसी एक देश से बंधा नहीं होता। समग्र ब्रह्मांड के कल्याण की कामना करने वाले को हमारे यहाँ संन्यास्त धर्म में प्रवेश मिलता है। परंतु मैं आप सबसे इसलिए एक प्रार्थना करना चाहता हूँ कि ब्रह्मांड का कल्याण तभी होगा जब भारत का कल्याण होगा। भारत के पुरातन वैदिक संस्कृति का कल्याण होगा। तो आप सबने जो अपने जीवन का एक मिशन बनाया है उसको मैं प्रणाम कर आप सबका मन से सम्मान करता हूँ। स्वामी रामदेव जी और आचार्य बालकृष्ण जी के योग धर्म, वेद धर्म, आयुर्वेद धर्म, शिक्षा धर्म और सेवा धर्म के साथ आप जीवन पर्यंत जुड़े रहें और संन्यस्त जीवन के सभी आदेशों को पूरा कर पाएँ, यही प्रभु के श्री चरणों में प्रार्थना है।
मित्रों आज माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी विगत 9 वर्षों से देश के प्रधान सेवक के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने भारत, भारतीयता और भारत के ज्ञान को उनके ब्रांड एंबेसडर बनकर समग्र विश्व में सम्मान दिलाने का काम किया है।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले ही यूएन की मीटिंग में नरेंद्र भाई ने यूएन के सामने प्रस्ताव रखा कि हमारे पुरखों ने एक ज्ञान अर्जित किया है जो कोई दवाई के बगैर मनुष्य के शरीर को निरामय रख सकता है। और मुझे आनंद है कि 27 सितंबर 2014 को जो प्रस्ताव रखा उसको पूरी दुनिया ने स्वीकार किया और पूरी दुनिया आज योग दिवस मना रही है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने जो ज्ञान अर्जित किया, वह केवल हमारे लिए नहीं है। इस समग्र संसार के, समग्र ब्रह्मांड के कल्याण के लिए है। यहाँ पर संन्यासियों ने योगियों ने जिस योग के विज्ञान पर सालों तक हजारों सालों से काम किया, इसको आगे बढ़ाया, परंपरा को आगे बढ़ाया, वह परंपराओं को एक वैश्विक मंच देने का काम श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया है।
हमारे देश को हर क्षेत्र में आगे लाना, हर क्षेत्र के अंदर मतलब उद्योग, अर्थतंत्र और शिक्षा के क्षेत्र में भी आगे लाने के लिए ढेर सारे काम श्री नरेंद्र मोदी जी ने किए हैं। मित्रों विश्वभर में बिखरी पड़ी गुलामी के कालखंड में भारत से चोरी की गई, उठाकर ले जाई गई और कई सारी मूर्तियों को मोदी जी ने अपने पुनः प्रतिष्ठित करके पुराने स्थान पर इसकी प्रतिष्ठा करने का काम किया है। इसके साथ-साथ सालों से मुगलों के समय से हमारी संस्कृति के हमारे धर्म के, हमारे राष्ट्र के सन्मान चिन्ह ऐसे ही पड़े थे, सारे हमारे राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र को श्री नरेंद्र मोदी जी ने फिर से एक बार उजागर करने का काम किया है।
राम जन्मभूमि का मसला द्वापर के समय से अटका हुआ था, लटका हुआ था, भटका हुआ था। एक सुबह सुप्रीम कोर्ट का आॅर्डर आते ही भाई मोदी जी ने इसका भूमि पूजन किया और भव्य रामलला का मंदिर बनवाया। मुझे पूरा विश्वास है कि अगले रामनवमी में रामलला अस्थाई मंदिर में नहीं होंगे, अपने भव्य मंदिर में विराजमान होंगे और पूरे विश्व को आशीर्वाद देंगे। इसके साथ-साथ मोदी जी ने औरंगजेब द्वारा तोड़ा हुआ काशी विश्वनाथ काॅरिडोर एक बार फिर से बनाया। इतने सालों के बाद बाबा विश्वनाथ के दरबार को पुनर्जीवित किया। केदारधाम पर नव-निर्माण परिधान, गुजरात में सोमनाथ का मंदिर फिर से सोने का बन रहा है। पावागढ़ के मंदिर पर शक्तिपीठ को पुनः प्रतिष्ठित किया गया है। ढेर सारे हिंदू धर्म के मानचिन्हों को मोदी जी ने फिर से प्रतिष्ठापित करने का काम किया है।
इसके साथ-साथ हमारी आजादी की लड़ाई जो एक परिवार के इर्द-गिर्द जो सिमट कर रह गई थी उसे व्यापकता प्रदान करते हुए उन्होंने सरदार पटेल का सबसे बड़ा लोहे का पुतला ‘स्टैच्यू आॅफ यूनिटी’ बनाकर सरदार पटेल को अमर करने का काम किया है। डाॅक्टर अंबेडकर के सभी स्थानों को एक म्यूजियम में बदला है, उनको गौरवान्वित किया है। पार्टीशन की विभीषिका को एक सीख के रूप में याद करें इसीलिए उन्होंने इसको मनाना शुरू किया। जलियाँवाला म्यूजियम और अंडमान निकोबार के सभी द्वीपों को परमवीर चक्र विजेता सहित उनको नाम देकर उन शहीदों को श्रद्धांजलि देने का काम श्रद्धेय माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया है।
राजपथ को कर्तव्य पथ में बदलकर मोदी जी ने हमें आने वाली आजादी की शताब्दी तक हमारे कर्तव्य के प्रति इंगित करने का काम किया है और उन्होंने लक्ष्य रखा है कि भारत 5 ट्रिलियन डाॅलर की इकोनाॅमी बने। 11वें नंबर से, पांचवे नंबर पर भारत का अर्थ तंत्र आया है और पांचवें नंबर से तीसरे नंबर पर ले जाने का लक्ष्य मोदी जी ने रखा है। मुझे पूरा विश्वास है कि संतों व संन्यासियों के आशीर्वाद से यह लक्ष्य भी जल्द पूरा होगा। समय की मेरे साथ कठिनाई है परंतु आज मैं यहाँ से संतोष, आनंद, ऊर्जा और आशा इन चारों को लेकर जा रहा हूँ कि आने वाले दिनों में हमारा देश निश्चित रूप से यश की दिशा में प्रसस्थ होगा।
मैं स्वामी रामदेव जी, आचार्य बालकृष्ण जी और उनके विशाल पतंजलि परिवार को आपके आंदोलन के लिए ढ़ेर सारी शुभकामनाएं और साधुवाद देकर अपनी बात को समाप्त करता हूँ।
भारत माता की जय ! वंदे मातरम !!
पूज्य मोहन भागवत (सरसंघ चालक : RSS)
मेरा आप सभी नव- संन्यासियों को आशीर्वाद देने का या प्रबोधन देने का, कुछ बोलने का अधिकार नहीं है। जैसा कि बाबा जी ने बताया है तो कभी-कभी ऐसा सूत्र आता है जिसके भाष्यकार होते हैं और भाष्यकारों के बाद फिर भी समझ में नहीं आता है तो कथा भाग में पुराणों के रूप में आता है। और उन कथाओं को बोलने वाले लोग होते हैं जिनको ग्रंथों का अध्ययन होता है। ऐसे ही आज आप मुझे सुनेंगे और समझेंगे। आज आप मुझे एक कथा वाचक के रूप में मानकर चलिए।
सनातन आ रहा है, ऐसा भजन में था तो यह सनातन कहाँ से आ रहा है? और वह कब गया था? वह कहाँ गया था? ऐसे कई प्रश्न हैं जिन पर लोग सवाल उठा सकते हैं। लोगों का स्वभाव रहता है कि सीधा किसी बात को विश्वास कर स्वीकार नहीं करते हैं। लेकिन बहुत थोड़े लोग हैं जो प्रश्न पूछते हैं, तो मुझे लगता है कि सनातन आ रहा है। इसका अर्थ यह है सनातन कहीं गया नहीं था। वह है, वह पहले भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। इसलिए ही वह सनातन है। उस सनातन की तरफ अब हमारा ध्यान जा रहा है और उसके अनेक लक्षण हैं जो प्रकट हो रहे हैं।
जैसे आजकल दुनिया में ये पश्चिम का जो विकास का माॅडल है इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। पश्चिम के बुद्धिजीवी जो बता रहे हैं वह अधूरी दृष्टी पर आधारित है, जड़वाद पर आधारित है, उपभोग पर आधारित है। लेकिन उसके प्रयोग हुए 2000 साल बीत गए किन्तु सुख नहीं मिला, शांति नहीं मिली। सारी दुनिया सोच रही है कि कहीं तो गड़बड़ है, कहाँ जाना है। अरे भाई, भारत के पास कोई तरीका है तो भारत को वो तरीका हमको देना चाहिए।
अब भारत में भी देखिए कोरोना के बाद क्या हुआ, पता नहीं वातावरण अपने आप बदला, लोगों को काढ़े का महत्व समझ में आ गया। लोगों को पर्यावरण समझ में आ गया। नियती ने भी एक ऐसा मोड़ लिया है, प्रकृति ने भी एक ऐसी करवट बदली है कि हर किसी को सनातन के प्रति सजग होना पड़ेगा, सनातन की तरफ उन्मुख होना पड़ेगा। और उसी का एक महत्वपूर्ण क्षण है कि जो मैं यहाँ देख रहा हूँ। सर्वस्व परित्याग करते हुए देश, धर्म, समाज व मानवता की सेवा के लिए मेरा जीवन है, ऐसी कल्पना करने वाले एक जगह इतनी बड़ी संख्या में लोग बैठे हैं। वह भगवा पहनने के लिए तैयार हैं, भगवा क्यों पहनना, तो भगवा केवल एक रंग नहीं, हमारे यहाँ भगवे का एक अर्थ है। भगवा पहन कर कोई चलता है तो बड़े से बड़ा राजकर्ता भी अगर, घुटने में दर्द है, पीठ की बीमारी है, झुक नहीं सकता तो कम-से-कम गर्दन नीचे झुका कर नमस्कार तो करेगा ही।
वह भगवा पहनने वाला कौन है? कैसा है? मालूम नहीं, लेकिन भगवा पहना है ना, इसका कारण हम जानते हैं। प्रकाश के आगमन का रंग भगवा है, सुबह-सुबह आकाश में वही दिखता है। सूर्याेदय होते ही नींद छोड़कर के लोग काम में लग जाते हैं। आप कितने भी आलसी हों, सोने वाले हों, तो भी दिन के प्रकाश में आप सो नहीं सकते। आपको कुछ अंधेरा करना ही पड़ता है।
सत्य को जानने का एक ही मार्ग है, माया को एक-एक करके छोड़ते जाओ। फिर जो रहता है वह तत्व रहता है, उसका अनुभव होता है। यही एक कल्याण का मार्ग है। हमारे सामने जो भगवा रंग की प्रतिष्ठा है उसको ही धारण करते हुए उस प्रतिष्ठा को और बढ़ाने का व्रत आप लोग आज ले रहे हैं। यह ध्यान में रखना कि जो सनातन है, उसको किसी सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है। कसौटी पर वही एक सत्य सिद्ध हुआ है, बाकी सब बदलता है। वह तब से चला है, आज भी है और कल भी रहेगा, लेकिन आज के युग में उसके चलते भगवा वस्त्र की जो प्रतिष्ठा है उसको और उस व्रत को धारण करें। उसकी कीर्ति को हम और बढ़ाएंगे तो इस सनातन को अपने आचरण से लोगों को समझाना पड़ेगा। क्योंकि लोग ऐसे ही समझते हैं। लोगों का जीवन व्यर्थ जा रहा है, लोग भटक रहे हैं। माया में फँस गए, बाहर नहीं निकल रहे। हृदय में करुणा आती है। यह करुणा संन्यासी की विशेषता है।
आप अब संन्यासी कहे जाएंगे क्योंकि शरीर पर भगवा होगा। लेकिन संन्यासी बनने के लिए संन्यास लेना पड़ता है। संन्यासी होने के बाद जमाने में आ गई विरक्ति छोड़नी होगी। भारत विश्व गुरु बनेगा और सारी दुनिया को सुख-शांति का संदेश देगा। आप लोगों को संबोधित करने का आपने मुझे इतना बड़ा सम्मान दिया, इसके लिए आचार्य बालकृष्ण जी और परम पूज्य स्वामी रामदेव जी दोनों को धन्यवाद।
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