स्वदेश स्वाभिमान - Swadesh Swabhiman

एजुकेशन फॉर लीडरशिप का शंखनाद

राष्ट्रभक्त बुद्धिजीवियों को विश्व नेतृत्व के लिए तैयार करने की योजना

   जब हम सतो गुण में स्थित होकर सात्विक प्रज्ञा के द्वारा प्रेम की पराकष्ठा में होते हैं, तब जो हमको अपना लगने लगता है हम स्वतः ही उससे अच्छी तरह से जुड़ जाते हैं। वर्तमान में हम इन्साइक्लोपीडिया आॅफ वल्र्ड हिस्ट्री पर पूर्ण मनोयोग से एक बड़ा कार्य कर रहे हैं।
    भारत के इतिहास को समझने के लिए हम भारत की विकृत हिस्ट्री से कभी समझ ही नहीं सकते। एक बड़े कालखण्ड तक हमें आर्य, आर्यन और दरविनियन आदि वर्गों में बाँटा गया। यह बहुत ही दिलचस्प बात है। कुछ लोग कहते हैं कि आर्यन बाहर से आये, यानि उनसे दूरी बना दी। जो जाति, जनजाति या अलग-अलग समाज के वर्ग निर्धारित हुए हैं, उसमें कहा जाता है कि कुछ बाहर से आये हैं और कुछ अन्दर के हैं, जिससे कि वे आपस में लड़ते रहें। यह प्रोपेगेन्डा इतनी प्लानिंग से किया गया कि हम सामान्य बुद्धि से इसे जान ही नहीं सकते। वो चतुराई से अपनी बात का प्रस्तुतिकरण इस प्रकार करेंगे कि आपको लगेगा कि यह बात तो सही है।
वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित होनी चाहिए-
   पतंजलि जन्म से जाति निर्धारण का पक्षधर नहीं है और हमारी संस्कृति में जन्म से जाति की व्यवस्था है भी नहीं। हमारी संस्कृति में कर्म को प्रधान माना गया है। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि- जन्मना जायते शूद्रः कर्मणा द्विज उच्यते। अर्थात् जन्म के समय तो हम एक जैसे ही पैदा होते हैं और जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म के आधार पर ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र बनते हैं। इसी आधार पर पहले वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी जो समय के प्रभाव में विकृत होकर जन्म आधारित हो गयी।
   हमें इस व्यवस्था को पुनः कर्म आधारित करना है। हमारे यहां परम्परा को बनाने के लिए वर्ण व्यवस्था थी। वर्ण व्यवस्था में विकृति आ गई। विकृति आने से हम जाति में बंट गये, जाति में बंटे तो विदेशी आक्रान्ता हमारे समीप आ गए। उन्होंने पहले हमको बांटा, फिर दूसरे आयातीत धर्म, जो विदेशी धर्म हैं उसे हम पर थोपना चाहा।
भारत का गौरवशाली इतिहास
    भगवान श्री राम से लेकर महाभारत के कालखण्ड में 15 से 20 हजार वर्ष की बात करें तो भारतवर्ष के इतिहास के विषय में लोग कहते हैं कि हमारे पास 5 हजार राजाओं की जानकारी है। लेकिन हमारे पास 7.5 हजार राजाओं की जानकारी है। उन 7.5 हजार राजाओं में कौन सा राजा किस जगह पर था, क्योंकि एक समय में बहुत सारे राजा थे, पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, चारों दिशाओं में राजा थे। समुद्र से लेकर हिमालय तक का, जो हमारा पूरा भू-भाग था, इसमें कौन सा राजा कब हुआ एवं वह कहाँ का राजा था, इतनी गहराई में अभी हम काम कर रहे हैं। बहुत जल्दी समय आयेगा कि हम पूरी दुनियां को भारत के गौरवशाली इतिहास के दर्शन कराएँगे।
हम सभी एक पूर्वज की संतान-
   बहुत बड़े स्तर पर बड़े समूह का डीएनए उनके पूर्वजों का अध्ययन करने के लिए किया गया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पूरब, पश्चिम व दक्षिण में जो जातियाँ व जनजातियाँ हैं, उन सबका डीएनए एक जैसा ही पाया गया। तो फिर भेद ही खत्म हो गया। फिर वो जो बाहर से आये थे, वे अलग कैसे हुए? हमें किसी विवाद में नहीं पडना है लेकिन जो हमारा इतिहास है, सत्य है, उसको जानने की हमें कोशिश करते रहना चाहिए।
देश के वास्तविक इतिहास को दुनिया के समक्ष रखेंगे
    इतिहास में गड़बड़ी बताकर उसे इतना परिष्कृत कर दिया गया कि सब गड़बड़ हो गया। यदि पुराने दस्तावेजों के आधार पर देखें तो स्थिति और अधिक खराब है। पतंजलि के तत्वाधान में इतिहास लेखन का बड़ा कार्य किया जा रहा है। श्रद्धेय स्वामी जी के नेतृत्व में यह सारा सत्य हम बहुत जल्द पूरी दुनिया के समक्ष रखने वाले हैं।
   हमें पीड़ा होती है कि षड्यंत्रकारी हमारे देश को बाँटने में लगे हुए हैं और हम सो रहे हैं। हमें जागना होगा। हमारे पास 14-15 से 16 हजार साल पुराना आॅर्कोलाॅजिकल एवीडेन्स व पूरे प्रमाण हैं। इतिहास व संस्कृति का पूरा डाॅक्यूमेंटेशन है। हालांकि हम कहते हैं कि हम लाखों-करोड़ों वर्ष पुराने हैं, पर हम बात करते हैं 14-15 हजार साल पहले की। हमारे पास 7 हजार से अधिक राजाओं की वशांवली व इतिहास है।
हमारी वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित-
    हमारे यहां कार्यों के विभाजन के आधार पर वर्ण व्यवस्था थी। उसके अनुसार यह सुनिश्चित नहीं था कि ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण या शूद्र का बेटा शूद्र बनेगा, यानि अपनी योग्यता के अनुसार अलग-अलग कार्य विभाजित था। समय के साथ-साथ इस व्यवस्था में कुछ विकृतियां पैदा हो गई और बाद में कहा गया कि स्त्री शुद्रोनादियताम् अर्थात् महिलाओं और छोटी जाति वालों को पढना मना कर दिया गया। हमारा पूरा इतिहास ऋषि-मुनियों की कथाओं से भरा पड़ा है, चाहे वह महर्षि वाल्मिकी हों, महर्षि विश्वामित्र हों या महर्षि जावल, ये सब अपने कर्म से पूज्य बने। आज भी हम मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और योगेश्वर श्री कृष्ण को पूजते हैं। वो भी क्षत्रिय वंश में पैदा हुए थे।
     पतंजलि में महिलाओं के साथ-साथ सभी धर्म व जातियों को समान अधिकार हैं। पतंजलि गुुरुकुलम् तथा पतंजलि संन्यासाश्रम में महिलाओं व शूद्रों को समान रूप से वेद, पुराण, व्याकरण, श्रीमद्भगद्गीता आदि की शिक्षा दी जाती है।
मुगल काल में विकृत हुई वर्ण व्यवस्था-
     प्राचीन काल में यह भेद वाली बातें कहीं भी नहीं दिखाई देंगी। यह बातें मुगलों के आगमन के बाद प्रारंभ हुईं। रोज लाखों लोगों का कत्ल कर देना, हमारे यज्ञोपवित व शिखाओं को काट देना मुगलों के शासन में आम हो गया था। बहुत से लोगों ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए अपना धर्म तक बदल दिया। कई लोग अपना स्थान छोड़कर चले गये। तब से इस तरह की विकृतियाँ चली आ रही हैं। समाज की विकृतियों को ठीक करने का दायित्व भी हम लोगों का ही है।
हमारी संस्कृति संपूर्ण मानवता के लिए-
      हमने कभी नहीं पूछा कि आप किस संस्था से जुड़े हो? आपका धर्म क्या है? आपकी जाति क्या है? हमारे यहाँ बहुत से मुस्लिम भाई और अलग-अलग धर्म व जाति के लोग हैं, वो सभी एक साथ मिलकर बैठते हैं, एक साथ खाते हैं। हमारे लिए मनुष्यता और मानव धर्म सर्वोपरि है। तो स्वाभाविक प्रश्न हम से किया जा सकता है कि आप सनातन और वैदिक परम्परा की बात क्यों करते हो? ऐसा हम इसलिए कहते हैं कि मानवीय मूल्यों की बात सिर्फसनातन में है। सनातन धर्म के ग्रन्थों में, वेद, उपनिषद्, दर्शन में कहीं पर भी मनुष्य में भेद नहीं किया गया है। यह हमारी संस्कृति ही है कि हम प्रतिदिन सुबह उठकर प्रार्थना करते हैं कि सर्वे भवन्तु सुखनिः। सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत््।। सर्वे भवतु में केवल मनुष्य मात्र ही नहीं अपितु पशु-पक्षी इत्यादि सब आते हैं। ये बातें और कहीं हैं क्या?
      पतंजलि योगपीठ यही सिखाता है। हमने आपको बता दिया कि जिन्दगी क्या है, धर्म क्या है, सत्य धर्म क्या है, जीवन का रहस्य क्या है और जीवन का मकसद क्या है। हमारी जीवन की अनुकुलताएं, सकारात्मक सोच आदि सब भगवान की कृपा से हैं। ये सब हमारे शास्त्र में वर्णित हैं। आयुर्वेद भी शास्त्र है, ज्योतिष भी शास्त्र है, वास्तु भी शास्त्र है और सभी शास्त्र सृजन के लिए हैं। शास्त्र बहकाने के लिए नहीं होते। आयुर्वेद आपको सावधान कराता है, आयुर्वेद आपके दोष के सूक्ष्म और गहन विश्लेषण कराता है, वात-पित्त-कफ की स्थिति का बोध कराता है और जीवन को जागरूकता व चेतन्यता के साथ कैसे जीना है।
समाज, राष्ट्र व योग-आयुर्वेद के लिए कार्य करें-
      जिस महामानव ने, जिस ऋषि ने सारी चुनौतियों का सामना करते हुए दुनियां को पहली बार यह कहा कि योग अपने आप में एक सम्पूर्ण चिकित्सा विज्ञान है, वे परम पूज्य स्वामी जी महाराज हैं। पतंजलि योगपीठ ही एकमात्र ऐसा संस्थान है जो आपको जीवन भी दे रहा है और आपको यह विद्या भी सिखा रहा है कि दूसरों को आप जीवन कैसे दे सकते हो। इसलिए अपनी परम्पराओं में रहना, अपनी परम्परा के अनुसार आचरण करना, सबके हित के विषय में सोचना, पर कभी भी धर्म विरूद्ध नहीं बनना। हमें कभी भ्रमित नहीं होना है। हमें समाज, राष्ट्र व योग-आयुर्वेद के लिए अपने शत-प्रतिशत सामथ्र्य से निरन्तर आगे बढना है।

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