आमेष्वजीर्णेषु गुदामयेषु, वर्चोविबंधेषु च नित्यमद्यात्।।
गुड के साथ शुण्ठी का सेवन करने से आम (आंव), अजीर्ण (अर्श/बवासीर) एवं वर्चोविबन्ध (मलबद्धता/कब्ज) आदि रोग नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार गुड़ के साथ उपकुल्या (पिप्पली), पथ्या (हरड़) एवं दाडिम (अनार)- इन सभी का अलग-अलग सेवन करने से भी पूर्वोक्त रोग नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार इस श्लोक में चार योग निर्दिष्ट हैं।
योग शत के प्राचीन टीकाकार सनातन के अनुसार गुड-शुण्ठी वाला पहला योग आम (आँव) में प्रयुक्त करना चाहिए तथा गुड-पिप्पली वाला दूसरा योग अजीर्णरोग में। इसी प्रकार गुड-हरीत की वाला तीसरा योग बवासीर तथा गुड-दाडिम वाला चतुर्थ योग मलबद्धता में उपयोगी होता है।
अयः (विशिष्ट विधि से शोधित लोहचूर्ण अथवा लोहभस्म), तिल, त्र्यूषण (त्रिकटु) एवं कोल (बदरीफल/बेर)- इन्हें समान मात्रा में लें। इन सबके बराबर शोधित माक्षिक धातु (सोनामाखी) का चूर्ण (भस्म) लें; तदनन्तर मधु मिलाकर मोदक (लड््डू) बना लें। इसका सेवन करने के उपरान्त अनुपान के रूप में तक्र लें। इससे बहुत बढ़ा हुआ पाण्डुरोग (पीलिया) भी नष्ट हो जाता है।
निवारयत्यास्यविधारितेयं श्वासं प्रवृद्धं प्रबलं च कासम्।।
हरीतकी (हरड़), नागर (शुण्ठी) एवं मुस्ता (मोथा) का चूर्ण बनाएं तथा इसके समान मात्रा में गुड़ मिलाकर गोबली बना लें। मुख में रखकर चूसने से यह गोली बढ़े हुए श्वासरोग (दमा) एवं प्रबल कासरोग (खांसी) को भी नष्ट कर देती है।
शोधित मनश्शिला (मैनशिल), मागधिका (पिप्पली) तथा ऊषण (कालीमिर्च)- इनके चूर्ण को कपित्थ रस एवं अंल (निंबूरस) के साथ कल्कित कर इसके समान मात्रा में लाजा (खील) मिलाएं। तदनंतर इसमें उचित मात्रा में मधु मिलाकर चाटें। यह योग बहुत प्रबल तथा रुक-रुक कर पुनः-पुनः उठने वाली छर्दि (उल्टी) को भी नष्ट कर देता है।-योगशतम्