हरिद्वार। लोहड़ी पर्व व मकर संक्रांति की पूर्व संध्या के अवसर पर पतंजलि योगपीठ स्थित यज्ञशाला में यज्ञ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कामना की कि ऐसे पावन पर्व हमारे जीवन में पूर्णता लाएँ। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति वैज्ञानिक विधाओं पर आधारित है। हमारी परम्पराएँ विज्ञानसम्मत हैं। गहराई से देखें तो पाएँगे कि ऋतु व आयुर्वेद अनुसार भोजन, ऋतु अनुसार त्यौहार व पर्वों की परिकल्पना हमारे पूर्वजों ने की है।
संक्रांति की मान्यता को बताते हुए उन्होंने कहा कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर-संक्रांति कहलाता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाता है। मान्यता है कि सूर्य उत्तरायण होने पर देवताओं का सूर्योदय होता है। उन्होंने कहा कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। इस दिन नई फसल के अन्न से बने भोज्य पदार्थ भगवान को अर्पण करके किसान अच्छे कृषि-उत्पादन हेतु अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
पूज्य आचार्य जी ने बताया कि मकर संक्रांति को देश के विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न नाम से मनाया जाता है। आसाम में इसे माघ बिहू, दक्षिण भारत में पोंगल, पंजाब में माघी, हरियाणा में सक्रांत, पश्चिम बंगाल में पूष संक्रांति आदि नामों से मनाया जाता है किन्तु इसे मनाने की मान्यता व उद्देश्य सूर्य की उपासना ही है। तिल-तिल दिन बढ़ने के कारण प्रतीक स्वरूप इस दिन तिल, तिल से बने पदार्थो व मूंगफली का सेवन किया जाता है। साथ ही चावल, खिचड़ी बनाने की भी परम्परा है।
कार्यक्रम में पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति- कुलपति प्रो. महावीर जी ने कहा कि पतंजलि में सभी पर्व व उत्सवों को यज्ञ के साथ मनाये जाने की परम्परा है। कार्यक्रम में पूज्या साध्वी देवप्रिया जी, डाॅ. जयदीप आर्य जी, स्वामी परमार्थदेव, बहन साधना, डाॅ. अनुराग वाष्र्णेय, श्री ऋषि आर्य, श्रीमती वेदप्रिया के साथ-साथ पतंजलि योगपीठ-1 व 2, भारत स्वाभिमान कार्यालय, पतंजलि विश्वविद्यालय, पतंजलि आयुर्वेद काॅलेज आदि के सभी अधिकारी, कर्मयोगी, विद्यार्थीगण तथा संन्यासी भाई व साध्वी बहनें उपस्थित रहे।