स्वदेश स्वाभिमान - Swadesh Swabhiman

नवीन क्रांति :  MNC's की मुनाफाखोरी की कहानी आंकड़ों की जुबानी

हमारा मूल धर्म योगधर्म है, और उसके साथ अब, यहां उद्योग धर्म योगमूलक उद्योग और उसमें राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि रखने का संकल्प

  छइी शताब्दी से भारत में विदेशियों की लूट का सिलसिला प्रारम्भ हुआ, जो आज तक बरकरार है। इस लूट को हम तीन भागों में बांट सकते हैं- एक अंग्रेजों से पूर्व विदेशियों, लुटेरों, मुगलों, आततायियों की लूट व गुलामी, दूसरी-ब्रिटिसर्स व यूरोपियन लोगों की लूट तथा तीसरी-आजादी के बाद की आर्थिक, सांकृतिक लूट व गुलामी का इतिहास हम भारतवासियों को इसलिए बताना चाहते हैं ताकि देश इससे सबक ले और आज ही इस लूट व गुलामी की जंजीरों से अपने-अपने स्तर पर भारत माताको मुक्त बनाने हेतु स्वदेशी का संकल्प लें तथा प्रचण्ड पुरुषार्थ करके परम वैभवशाली भारत बनायेंगे।
      हमारे वीर शहीदों व क्रांतिकारियों का सपना था कि हम देश को राजनीतिक गुलामी से आजादी तो दिलाएँ ही साथ ही साथ हम देश को आर्थिक आजादी भी दिलाएँ क्योंकि विदेशी ताकतों ने हमारे देश को राजनीतिक गुलाम तो बनाया ही था साथ ही आर्थिक रूप से भी पूरी तरह कमजोर कर दिया था। हमारा देश पहले विश्व की अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक निर्यात करके पूरी दुनियाँ का सिरमौर था, पूरी दुनियाँ से सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात भारत में व्यापार के कारण आता था। हमारा उत्पादन व निर्यात दुनियाँ में सबसे ज्यादा था। हमारा वह व्यापार तंत्र विदेशी शक्तियों के षड्यंत्र से नष्ट हो गया। सबसे पहले महर्षि दयानंद जी ने, उसके बाद लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने और फिर वीर सावरकर, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, शहीद भगत सिंह और महात्मा गांधी ने स्वदेशी का दर्शन दिया और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया। आजादी के बाद भी अनेकों महापुरुषों और संस्थाओं ने स्वदेशी के इस दर्शन व विचार को आगे बढ़ाया परन्तु विदेशी वस्तुओं को टक्कर देने के लिए कोई व्यवहारिक विकल्प उपलब्ध नहीं मिल पाया। वर्तमान समय में इस स्वदेशी के विचार व दर्शन को प्रामाणिकता व व्यावहारिकता के साथ धरातल पर उतारने का काम पतंजलि योगपीठ ने किया है। पतंजलि योगपीठ के माध्यम से हमने न केवल स्वदेशी के इस दर्शन को आगे बढ़ाया, अपितु घरेलू प्रयोग के सभी विदेशी वस्तुओं का उनसे उच्च गुणवत्ता के साथ उनसे कम कीमत पर मिलावट रहित विकल्प भी उपलब्ध करवाया। विदेशी कंपनियाँ न केवल देश का धन लूट रही हैं बल्कि देश की संस्कृति को नष्ट करने में भी लगी हुई हैं। छठी शताब्दी से लेकर 21वीं सदी तक विदेशी हमलावर व विदेशी कम्पनियाँ देश को लूटती रही हैं।
    पहली- अंग्रेजों से पूर्व विदेशी लुटेरों की लूट: अंग्रेजो से पूर्व विदेशी लूटेरों अरबी, तुर्की, इरानी, अफगानी आदि हमलावरों की लूट। 638 से लेकर 711 तक 74 साल में 9 विदेशी खलिफाओं के नेतृत्व में 15 बार आक्रमण हुआ, 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम (712 ई. में) ने किया, उसके बाद उसका उत्तराधिकारी मोहम्मद जुनेद आया। फिर 998 से लेकर 1030 तक 17 बार महमूद गजनवी (1001 ई. में) सोमनाथ से लेकर अलग-अलग शहरों को लूटने के लिए बार-बार भारत आया।
        उसके बाद 12वीं, 13वीं सदी में चंगेजखान, तैमूर लंग आदि हमलावर भी भारत की वैभवता को देखकर हमला करने व लूटने के लिए आते रहे। 17वीं शताब्दी में इरानी हमलावर नादिरशाह आया, वह भारत से कोहिनूर हीरा व तख्तेताउस (मयूर सिंहासन) लूटकर लेकर गया। हिन्दूस्तान के 1 हजार सालों की लूट के बाद भी नादिरशाह के दरबारी इतिहासकार, मिर्जा मेहदअस्तराबादी की आंखें भारत की दौलत को देखकर फटी की फटी रह गयी। उसने लिखा है- बेहद कम दिनों में ही शाही खजाने और कारखानों की जब्ती के लिए तैनात अधिकारियों ने अपना काम पूरा कर लिया। यहाँ तो हीरे-मोती, जवाहरात, रत्न, सोना-चांदी, उनके बर्तन, और दूसरी चीजों का सागर है। यहाँ पर विलासितापूर्ण चीजों का इतना भंडार है कि खजांची और मुंशी सपने में भी इन्हें अपने बही-खातों में दर्ज नहीं कर पाएंगे।वह आगे लिखता है- लूट का सामान ‘700 हाथियों, 4,000 ऊंटों और 12,000 घोड़ों से खींची जा रही अलग-अलग गाडिय़ों पर लादा गया था। इन सभी गाडिय़ों में सोना-चांदी और कीमती रत्न भरे हुए थे।यह केवल एक स्थान आगरा से नादिरशाह की लूट के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इसके अतिरिक्त भी एक-एक आक्रमणकारी अलग-अलग नगरों पर आक्रमण करके हजारों खच्चरों, घोड़ों, ऊटों, हाथियों व बैलगाडिय़ों पर लादकर भारत से मूल्यवान वस्तुएं सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात, मोती, माणिक, कीमती पत्थर, स्वर्ण मुद्रायें आदि लूटकर ले जाते रहे। यद्यपि इसकी गणना सम्भव नहीं है तथापि जो आधे-अधूरे प्रमाण उपलब्ध हैं उसके अनुसार यह लूट आज की मुद्रा में सैकड़ों लाख करोड़ की है।
   15वीं सदी की शुरूआत में बाबर भारत को लूटने आया, इनमें से बहुत से ऐसे विदेशी हमलावर थे जो भारत के धन-वैभव को देखकर अपना मूल देश छोड़कर यही पर जबरदस्ती शासक बनकर रहने लगे। जैसे- बाबर के बाद उनके वंशज, हुमायूँ, अकबर, शाहजहाँ, जहाँगीर, औरंगजेब (भारत पर राज करने वाला छठा मुगल शासक था) आदि। अंग्रेजों के आने से पहले 15वीं सदी से पहले ऐसे विदेशी हमलावरों ने सैकड़ों लाख करोड़ की लूट भारत से की। इसमें किसी भी प्रकार का कोई संशय नहीं है।
    दूसरा- 15वीं सदी के बाद की लूट: अरबी, फारसी, तुर्की आदि हमलावरों से भारत कि समृद्धि की खबरें जब यूरोप पहुंची। प्राचीनकाल से ही भारत के व्यापारी भारत से उच्चगुणवत्ता का मलमली, रेशम और सूती कपड़ा, हीरे-मोती, इत्र, गुलाब जल, हाथी दांत का सामान, मसाले, विभिन्न धातुओं का सामान ले जाकर यूरोप में बेचते थे। भारत के सामान की यूरोप में इतनी मांग थी कि भारत के व्यापारियों को मसालों व कपड़ों के बदले सोना-चांदी मिलता था। मध्यकाल में जब तुर्की साम्राज्य व यूरोप में युद्ध छिड़ गया तो व्यापार का मार्ग बंद होने से यूरोप के बाजारों में भारतीय मसालों व सामान की कीमतें 400-400 गुना बढ़ गयी। भारतीय सामान से व्यापारियों को इतना अधिक लाभ होता था कि वह कोई भी जोखिम उठाने के लिए तैयार रहते थे।
    यूरोप के व्यापारी व कम्पनियाँ किसी भी तरीके से भारत से व्यापार का मार्ग खोज कर व्यापार के नाम पर मुनाफा कमाना चाहती थीं। 15वीं सदी में पुर्तकाल के राजकुमार हेनरी ने तथा राजा डाॅम हेनरी (1394- 1460) ने लगातार 40-50 वर्षों तक भारत का समुद्री मार्ग खोज कर पहुंचने के लिए अलग-अलग दल राज्य के खर्चे पर भेजते रहे।
   1498 में वास्को-द-गामा पुर्तगाली केरल राज्य के कालीकट से होते हुए पहली बार भारत पहुंचा। उसके बाद भारत में व्यापार के नाम पर लूटमार करने के लिए फ्रांसिसी आये। हाॅलेण्ड से डच आये, ब्रिटेन से अंग्रेज आये, सभी का उद्देश्य सोने की चिडिय़ा भारत को लूटना था। 1498 से लेकर 1947 तक कितने हजार लाख करोड़ रुपये लूटे होंगे इसकी गणना करना तो असम्भव है, पर कुछ प्रमाणिक आँकड़े उपलब्ध हैं जिनके आधार पर केवल अनुमान लगाया जा सकता है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी से लेकर देश की आजादी 1947 तक भयंकर लूट हुई हैं, उसी लूट से 15वीं सदी के बाद यूरोप में औद्योगिक विकास हुआ विभिन्न अविष्कार हुए जिनपर आज आधुनिक विज्ञान टिका हुआ है। उनमें से अधिकतर 15वीं शताब्दी के बाद भारत से लूटे गये धन के बल पर हुआ।
    यूनानी, अरबी, तुर्की, इरानी, दुर्रानी, अफगानी पठान, मुगलों आदि ने तलवार के बल पर लूटा। अंग्रेजों ने आने के बाद तरीका थोड़ा बदला और तलवार व बंदूक के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी बनाकर व्यापार के नाम पर लूटमार की।
     इतिहासकार आर.सी. दत्त ने तो यहाँ तक कहा था कि जो तैमूर, नादिरशाह, अब्दाली तथा ऐसे अन्य आक्रमणकारी के हमले से ज्यादा बुरा है भारत में अंगेजी शासन निरन्तर लूट तथा आक्रमण के समान है। ये लोग आये लूटा और चले गए किन्तु ब्रिटिश राज हर रोज लूट रहा है। जिसके कारण भारत अकालों का देश बन गया है।
    आर्थिक इतिहासकार अंगस मैडीसन की पुस्तक द वल्र्ड इकाॅनमीः ए मिलेनियल प्रस्पेक्टिव (विश्व अर्थव्यवस्थाः एक हजार वर्ष का परिप्रेक्ष्य) के अनुसार भारत विश्व का सबसे धनी देश था और 17वीं सदी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। उन्होंने गणना की, कि भारत 1830 में औद्योगिक उत्पादन का विश्व का 17.6 प्रतिशत भाग रहा था जबकि ब्रिटेन का भाग सिर्फ 9.5 प्रतिशत ही था। 1900 तक भारत का हिस्सा घटकर 1.7 प्रतिशत रह गया और ब्रिटेन का हिस्सा बढ़कर 18.6 प्रतिशत हो गया।
     सैकड़ों सालों की लूट के बाद मुगलकाल में अकबर के पास दुनिया की एक चैथाई दौलत हुआ करती थी। इतिहासकार एगस मैडिसन के अनुसार अकबर के समय में भारत की जीडीपी एलिजाबेथ के समय के इंग्लैंड के जीडीपी के बराबर थी। प्रस्तुत ग्राफ में आप एंगल मेडिसन के 2000 सालों के वैश्विक जीडीपी में भारत किस प्रकार से पूरे विश्व में विदेशी लूटेरों व विदेशी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आगमन से पहले की स्थिति का अवलोकन करें।
    अंग्रेजों ने मात्र 163 वर्षों में कितना लूटा: विदेश मंत्री एस.जे. शंकर ने अक्टूबर 2019 में यू.एस.ए. के वाशिंगटन डीसी में अटलांटिंग काउंसलिंग की बैठक में कहा कि- भारत ने पश्चिमी देशों की वजह से 200 साल तक प्रताडऩा झेली है। एक आर्थिक आंकलन के मुताबिक ब्रिटिश आज के हिसाब से 45 ट्रिलियन डाॅलर छीनकर लेकर गये। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश 18वीं सदी के मध्य में भारत में घुसे थे, अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक की गणना के अनुसार केवल 1765 से लेकर 1938 तक अंग्रेजों ने भारत से 45 ट्रिलियन डाॅलर अर्थात् 3,150 लाख करोड़ रुपये लेकर गये।
    विश्वप्रसिद्ध कोलम्बिया विश्वविद्यालय की एक इकाॅनोमी स्टडी रिसर्च रिपोर्ट में भारत की अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक ने यह आंकड़ा प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया है। यदि 163 साल में आज के 3,150 लाख करोड़ रुपए की लूट हुई है यह राशि इतनी बड़ी है कि वर्तमान में भारत सरकार का वार्षिक बजट लगभग 39 लाख करोड़ रुपये है। इस राशि से भारत के 80 वर्षों का बजट बन सकता है। यह लूट केवल 163 साल की है यदि छठी शताब्दी से लेकर अब तक की 1400 साल की लूट की गणना करें तो इसकी राशि कल्पना से बाहर है।
तीसरी आजादी के बाद विदेशी कंपनियों द्वारा आर्थिक, सांस्कृतिक लूट: विदेशी आक्रमणकारियों व ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन से केवल धन की ही लूट नहीं हुई है अपितु ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपनी लूट को अनवरत जारी रखने के लिए भारत की शिक्षा व्यवस्था को, भारत की चिकित्सा व्यवस्था को, भारत की कृषि व्यवस्था को व भारत की न्याय व्यवस्था को भी दूषित कर दिया। विदेशी शासन केवल आर्थिक व राजनैतिक गुलामी लेकर नहीं आया, अपितु सांस्कृतिक व सामाजिक तौर पर भी भारत के ताने-बाने को नष्ट कर दिया। एक उदाहरण- विदेशी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कारण किस प्रकार से लोग बेरोजगारी, भूखमरी के शिकार हुए हैं उसके बारे में अमरीकी इतिहासकार मैथ्यू व्हाईट ने द ग्रेट बुक आॅफ हाॅरिबल थिंग्सके नाम से एक पुस्तक में बताते हैं, जिसमें उन्होंने इतिहास के सौ भयानक रक्तपातों की समीक्षा पेश की है, जिनके दौरान सबसे ज्यादा इंसानी जानें गईं। इस पुस्तक में इतिहास का चैथा भयानक नरसंहार ब्रिटिश दौर में भारत में आने वाला अकाल है, जिनमें वाईट के मुताबिक दो करोड़ 66 लाख भारतीयों की जानें गई। इस संख्या में व्हाईट ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बंगाल में आने वाले अकाल की गिनती नहीं की, जिसमें 30 से 50 लाख के करीब लोग मारे गए थे।
        ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1853 में ही अपने साथ 8 बड़ी विदेशी कंपनियों को भारत में फैला दिया। उसके बाद आजादी से पहले 1940 में केवल 55 विदेशी कंपनियां देश में सीधे व्यापार करती थीं। आजादी के बाद 1952 में ब्रिटेन की 8 बड़ी कंपनियों के सीधे नियंत्रण में 701 कंपनियां व्यापार कर रही थी।
  • 1972 में लगभग 740 विदेशी कंपनियां थीं, 1977 में विदेशी कंपनियों की संख्या 1,136 हो गयी थी, 2008 में लगभग ढाई हजार से ज्यादा विदेशी कंपनियां काम कर रही थी। यदि आज की बात करें तो सीधे-सीधे 5,000 से ज्यादा विदेशी कंपनियां भारत में व्यापार के नाम पर मुनाफाखोरी कर रही हैं। 2021 में भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार लगभग 12,000 विदेशी कम्पनियां प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कार्यरत हैं।
  • 1937 में एक कोलगेट कंपनी आई जिसने केवल 1,50,000 रुपये का निवेश किया और आज वह लगभग 5,000 करोड़ रुपए का कारोबार केवल टूथपेस्ट के क्षेत्र में करती है।
  • हिंदुस्तान युनिलीवर 1933 में मात्र रुपये 24 लाख ही की पूंजी लेकर आई थी, आज उसकी वार्षिक बिक्री 45 हजार करोड़ की है। यह केवल एक कम्पनी के आँकड़े हैं। आप कल्पना करें कि 12,000 से अधिक विदेशी कंपनियों से कितना धन देश से बाहर जाता होगा।
     राष्ट्र को विदेशी कम्पनियों से केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि राजनैतिक सामाजिक व सांस्कृतिक हानि भी होती है- षड्यंत्रपूर्वक यह झूठ फैलाया जाता है कि विदेशी कम्पनियाँ पूँजी तथा तकनीक लेकर आती हैं तथा निर्यात, रोजगार व प्रतिस्पर्धा को बढ़ाती हैं। यह झूठा प्रचार-प्रसार प्रायोजित ढंग से विदेशी कम्पनियों तथा उनको संरक्षण देने वाले विदेशी-परस्त शासकों, उद्योगपतियों एवं उनसे लाभान्वित होने वाले लोगों द्वारा किया जाता है। हकीकत यह है कि विदेशी कम्पनियाँ देश में पूँजी लाती नहीं, बल्कि लेकर जाती हैं। विदेशी कम्पनियाँ विशेष तकनीकी लेकर नहीं आती, अपितु गृह उद्योग एवं लघु उद्योगों को खत्म करके बेरोजगारी बढ़ाती हैं। ये कम्पनियाँ कोका-कोला, पेप्सी, लक्स व अन्य विदेशी उत्पाद भारत में बनाकर विदेशों में नहीं बेचती हैं। जो स्वदेशी कम्पनियाँ इनसे प्रतियोगिता करती हैं ये कम्पनियाँ किसी भी तरीके से उनका अधिग्रहण करके उन्हें खत्म कर देती हैं। अपने स्तरहीन, गुणवत्ताहीन उत्पादों को बेचने के लिए ये कम्पनियाँ झूठे प्रचार का सहारा लेती हैं और उपभोगताओं को ग्लैमर परोसती हैं। ये विदेशी कंपनियां लोगों में कृत्रिम उत्साह, कृत्रिम भूख पैदा करके, झूठे सपने दिखाकर व भावनात्मक दोहन करके भारत की जनता का आर्थिक शोषण करती हैं और भोली-भाली जनता में स्वदेश व स्वदेशी के प्रति हीन भावना विकसित करती हैं। अधिकांश विदेशी कम्पनियाँ साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट, क्रीम, पाऊडर, अचार, चटनी व कोल्ड ड्रिंक्स आदि बनाती हैं, जिसमें कोई बड़ी तकनीकी (टैक्नोलाॅजी) प्रयोग में नहीं आती हैं। इससे बेरोजगारी बढ़ती है तथा निर्यात और प्रतिस्पर्धा समाप्त होती है।
दूसरा- देश की आर्थिक लूट के साथ-साथ हमारे आहार, विचार, संस्कार व संस्कृति को भी दूषित करती हैं। हमारी माँ बहन बेटियों को थोड़ा सा आर्थिक प्रलोभन देकर अश्लील व नग्नता के नंगे नाच का षड्यन्त्र रचती हैं। यही विदेशी कम्पनियां विदेशों में प्रतिबंधित दवा व अन्य उत्पादों का कचरा जो विदेशों में नहीं बिकता, वो हमारे यहाँ खुले तौर पर बेचती हैं। विदेशी एलोपैथी की सैकड़ों दवा एवं कीटनाशकों के साथ परमाणु बिजली घरों की रिजेक्टिड टैक्नोलाॅजी का हमारे यहाँ खतरनाक तरीके से प्रयोग हो रहा है। ये विदेशी कम्पनियाँ आर्थिक गुलामी के साथ धीरे-धीरे ईस्ट इण्डिया की कम्पनी की तरह एक दिन देश को राजनैतिक रूप से भी भ्रष्टाचार करके राजतंत्र को अपना गुलाम बना लेती हैं। यह सबसे बड़ा सत्य है कि जिस देश में विदेशी कम्पनियाँ होती हैं, वह देश कभी भी आत्मनिर्भर व स्वावलम्बी नहीं हो सकता तथा वहाँ के नागरिकों का स्वाभिमान समाप्त हो जाता है।
       आइये! हम अपने जीवन में विदेशी कंपनियों के बहिष्कार व स्वदेशी से स्वावलम्बी भारत बनाने का संकल्प लें। क्रांतिकारियों के स्वदेशी दर्शन को धरातल पर उतारने के उद्देश्य से पतंजलि आयुर्वेद की स्थापना की गई है। पतंजलि का उद्देश्य प्रोफिट कमाना नहीं है बल्कि पतंजलि देश के लोगों की प्योरिटी व चैरिटी के लिए काम करता है। पतंजलि की यात्रा अर्थ से परमार्थ की यात्रा है। पतंजलि का संचालन कोई अमीर व्यक्ति नहीं बल्कि दो वस्त्रों में रहने वाला, जमीन पर सोने वाले, एक फकीर, संन्यासी पूज्य स्वामी जी करते हैं। पतंजलि देश को दवाओं, थ्डब्ळ, खाद्य तेलों आदि में आर्थिक रूप से स्वावलम्बी राष्ट्र बनाने के लिए सामुहिक समृद्धि व मानव से राष्ट्रसेवा का यज्ञ कर रही है। इसमें आप भी स्वदेशी का संकल्प लेकर अपनी आहुति दें।   -(योग संदेश-सम्पादकीय)

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