भारत में आज से मात्र 20-30 साल पहले तक किसी किसी को दिल का दौरा पड़ता था और दिल के दौरा पडऩे की घटना को बहुत गंभीरता से आश्चर्य मानकर चर्चा की जाती थी। लेकिन अभी हम देखें तो हार्ट अटैक आम हो गया जैसे दशहरे पर रामायण के समय में ही हनुमान बने कलाकार की स्टेज पर मौत हो जाती है, रावण बने कलाकार व भगवान शिव बने जवान कलाकार अभिनय करते करते समय ही हार्ट अटैक से मर जाते हैं। हम अगर पिछले एक-दो सालों की बात करें तो स्टेज के ऊपर फेमस सिंगर कृष्णकुमार कुन्नाथ (के.के.) की जिनकी आयु कोई ज्यादा नहीं थी उनकी डेथ हो गई। राजू श्रीवास्तव की केवल 58 साल की आयु में हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी। सिद्धार्थ शुक्ला जो केवल 40 वर्ष के थे उनकी मौत हार्ट अटैक से हो गई, और ब्रह्म मिश्र जो सिद्धार्थ शुक्ला से भी 4 साल छोटे 36 साल के थे, वह हार्टअटैक से मर गये। पुनीत राजकुमार की बात हो, राज कौशल की बात हो या ऐसे हजारों लाखों लोग हैं जिनको 40 वर्ष 50 वर्ष से भी कम उम्र में हर्ट अटैक आ रहा है।
आखिर देश में जवान लोगों को होने वाली हार्ट की इन बीमारियों का मूल कारण क्या है? विशेषज्ञों की बात करें तो वह इसके लिए धूम्रपान, कोलस्ट्रोल, शुगर, अनियमित जीवनशैली, डिब्बाबंद जंक फूड या व्यायाम नहीं करने को इसका कारण ठहरा देते हैं।
लेकिन दूसरी और हम कुछ ऐसा भी देखते हैं कि बहुत से ऐसे लोग जो जिम में व्यायाम कर रहे थे, जिनका मोटापा बहुत अधिक ज्यादा नहीं था, जो बाहर के खाने को लेकर सजग थे, और जो धूम्रपान भी नहीं करते थे, शराब भी नहीं पीते थे, ऐसे लोगों को भी अचानक हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट आ रहे हैं। अगर हम इस पर शोध करें तो पाते हैं कि अचानक आने वाले हार्ट अटैक का जिम्मेदार कोई एलोपैथिक दवा कोई वैक्सीन या हम जिस दवा को सुरक्षित समझ कर ले रहे हैं वह दवा हो सकती है, तो देश में शायद ही कोई व्यक्ति इस बात पर यकीन करेगा। लेकिन ऐसी सैकड़ो दवाएं जो हार्ट अटैक के लिए जिम्मेदार हैं। एलोपैथिक की दवा जिन को हार्ट अटैक के लिए जिम्मेदार पाया गया, जिनको कई कई देशों में प्रमाणित तौर पर हार्ट अटैक का जिम्मेदार मान कर वापस लिया गया। जिन दवाओं को एप्रूव्ड करते हुए पहले क्लीनिकल कंट्रोल्ड ट्रायल और रिसर्च में प्रयोग के लिए सुरक्षित माना गया लेकिन जब उनके जानलेवा दुष्प्रभाव हार्ट पर आए और भी बहुत सी बीमारियां उन्होंने पैदा की तो उनको बाजार से ही वापस ले लिया गया।
भारत में बढ़ती दिल की बीमारियाँ-
मेडिकल जर्नल ष्ज्ीम स्ंदबमजष् के 2018 के संस्करण में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि 1990 में भारत में होने वाली कुल मौतों में केवल 15ः का कारण दिल से जुड़ी हुई बीमारियां थी, लेकिन 2016 में यह आंकड़ा लगभग 2 गुना होकर 28ः हो गया।
भारत में जहां हार्ट से सम्बंधित बीमारियों से 1990 में लगभग 22.6 लाख लोग मरते थे, अब 2020 में हार्ट से सम्बंधित बीमारिओं से मरने वाले लोगों की संख्या 47.7 लाख हो चुकी है।1
इसी तरह दूसरी रिसर्च रिपोर्ट यह कहती है कि 2015 तक भारत में 6 करोड़ लोगों का दिल की बीमारी हुई और उनमें से 2.3 करोड लोग ऐसे थे जिनकी उम्र 40 साल से कम है, लगभग 40ः दिल के मरीजों की उम्र 40 वर्ष से कम है।
आज पूरी दुनिया में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सर्वाधिक सुविधाओं वाले देश अमेरिका में हार्ट की बीमारियों से प्रत्येक 34 सेकंड में एक व्यक्ति की मौत हो जाती है।2
दिल की बीमारियों ने वर्ष 2016 में किसी भी अन्य संचारी रोग की तुलना में अधिक भारतीयों (28%) को मार डाला। यह 1990 में दर्ज संख्या से दोगुना है जब यह 15% थी।
हर शहर की भयानक तस्वीर-
स्थिति इतनी भयावह है कि उदहारण से समझते हैं, भारत के एक शहर रांची में एलपीएस कार्डियोलाॅजी इंस्टीट्यूट ने जो आंकड़ा दिया है, उसके मुताबिक 10 साल में आईसीयू में भर्ती होने वाले रोगियों की संख्या ढ़ाई गुना बढ़ गई है। कोरोना काल के बाद ऐसे रोगियों की भी संख्या बढ़ी है, जिन्हें हार्ट अटैक पड़ते ही मौत हो रही है।
एक समय वृद्धावस्था में घेरने वाली दिल की बीमारी आज छोटी उम्र के लोगों को भी अपना शिकार बना रही है। एक शोध के अनुसार, भारत में पिछले 15 वर्षों में हृदयघात से मरने वालों की संख्या में 34% का इजाफा देखा गया है। आखिर आज हमारा दिल इतना कमजोर क्यों हो रहा है कि आज हार्ट अटैक साइलेंट किलर बनकर हर दस में से चार मौतों का कारण बन रहा है।
आखिर कौन है हार्ट की बढ़ती बीमारियों का जिम्मेदार-
फार्मा लाॅबी द्वारा भ्रामक रिसर्च करके जिन दवाओं को बहुत सुरक्षित कहा जाता है, जिनमें मोटापा कम करने वाली दवा से लेकर ब्लड प्रेशर को ठीक करने का दावा करने वाली तथा यह कहने वाली की ब्लड प्रेशर ठीक रहेगा तो हार्ट ठीक रहेगा उन दवाओं से ब्लड प्रेशर तो ठीक नहीं हुआ, लेकिन हार्ट की समस्याएं जरूर पैदा हुई। एंटीबायोटिक दवाएं भी हैं जिनका हार्ट के ऊपर साइड इफेक्ट के कारण उनको बाजार से वापस लिया गया और उनके ऊपर बैन लगाया गया। इसी प्रकार जो सामान्य गैस, एसिडिटी, खट्टी डकार, की हम दवा लेते हैं वह भी हार्ट पर साइड इफेक्ट डालकर हार्ट को फेल करने का काम करती है। गठिया की दवा हो या ।दजप.कपंइमजपब दवा हो या फिर वजन कम करने की या किसी प्रकार के मनोरोग की दवा हो या, पार्किंसन की दवा हो, भूख कम करने की दवा हो या जो सामान्य कफ सिरप भी हम लेते हैं जैसे क्लोबुटिनाॅल नाम के एक कफ सिरप को भी दिल की गंभीर बीमारियां पैदा करने वाला मानकर 2007 में दुनिया भर के बाजारों से वापस लिया गया।
भूख कम करके मोटापा घटाने वाली दवा के कारण हुआ हार्ट फेल-
1. साल्ट का नामः थ्मद.च्ीमद ;थ्मदसिनतंउपदमध्च्ीमदजमतउपदमरू फेनफ्लुरामाइन/फेंटरमाइन)ः थ्क्। ने 1959 में मोटापे के इलाज के लिए एकल दवा फेंटरमाइन (चचमजपजम ेनचचतमेेंदज) के रूप में प्रिस्क्रिप्शन के लिए मंजूरी दी, और 1973 में थ्क्। ने फेनफ्लुरामाइन (थ्मदसिनतंउपदम) को एकल दवा के रूप में भूख कम करने के लिए मंजूरी दी। लेकिन फेनफ्लुरामाइन/फेंटरमाइन ये दोनों दवाएँ 1990 के बाद सयुक्त रूप से भूख को कम करने और मोटापे को कम करने के लिए उपयोग की जाने लगी थी। 1996 में इसकी बिक्री $300 उपसससपवद (2250 करोड़ रुपए) थी।४
सुसान , नाम की एक महिला जो एक पुस्तकालय में काम करती थी। सुसान की शादी जल्द ही उनके दोस्त डैन (क्ंद) से होने वाली थी। एक दिन सुसान ने अपनी समस्या अपने आॅफिस के किसी स्टाफ को बताया तो उसने सुसान को बताया कि वो काफी दिनों से अपना वजन कम करने के लिए अपने डाॅक्टर से संयुक्त दवा (बवउइपदमक उमकपबपदम) ले रही है और उसने दो महीनों में काफी ज्यादा वजन कम किया है। सुसान भी उसी डाॅक्टर के पास जाती है और डाॅक्टर को बताती है कि वह डाइटिंग और एक्सरासाइज करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे वजन कम करने में कोई सफलता नहीं मिल रही थी। बिना किसी हिचकिचाहट के, डाॅक्टर ने थ्मद.च्ीमद प्रेसक्राइब किया।
डाॅक्टर ने चमत्कारी इलाज का दावा करते हुए रिसर्च बेस्ड क्लीनिकल कंट्रोल्ड ट्रायल की गई एक रेपुटेड कंपनी की दवा प्रेसक्राइब की और दवा लिखते हुए डाॅक्टर ने यह भी कहा कि यह दवा पूरी तरह से सुरक्षित है इसकी पूरी तरह से जांच की गई है तथा एक बार भी दवा के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में कोई चेतावनी नहीं दी। सुसान ने दवा लेना शुरू कर दिया और उसने कुछ दिनों में काफी वजन कम कर लिया।
15 सितंबर, 1996 को डैन और सुसान की शादी हुई थी। शादी के बाद वे दोनों बाहर घूमने गए। सुसान अपनी दवा साथ ले गई क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसका वजन बढ़े। सुसान अपने आप को थका हुआ महसूस करती है और उसकी सांस फूलने लगती है। सुसान के डाॅक्टर ने उसकी अच्छी तरह से जाँच की और पाया कि सुसान के दृष्टि में कुछ समस्या लग रही थी। सुसान अपने डाॅक्टर को बता देती है कि वो कुछ दिनों से वजन कम करने की दवा थ्मद.चीमद ले रही थी। तब डाॅक्टर सुसान को यह बताता है कि मायो क्लिनिक (डंलव बसपदपब) ने अभी एक अध्ययन जारी किया है जिसमें बताया गया है कि थ्मद.च्ीमद दवा लेने वाले रोगियों के हार्ट वाल्व खराब हो रहे हैं। कार्डियोलाॅजिस्ट ने उन्हें समझाया कि सुसान के हार्ट वाल्व को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचा है, जिसमें उनके माइट्रल वोल्व को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। उन्होंने समझाया कि ऐसा तब होता है जब फेफड़ों को ब्लड की आपूर्ति करने वाली धमनियों में रक्तचाप बढ़ जाता है। हालाँकि सुसान का बहुत सी दवाओं के साथ इलाज किया गया लेकिन चार साल बाद सुसान की फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप (चनसउवदंतल ीलचमतजमदेपवद) के कारण मौत हो जाती है।
8 जुलाई 1997, मायो क्लिनिक ने उन महिलाओं में हार्ट वाल्व डैमेज की सूचना दी, जिन्होंने वजन घटाने के लिए थ्मद.च्ीमद का काॅम्बिनेशन लिया था। थ्क्। ने तुरंत डाॅक्टरों और अन्य हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स को सात लाख वार्निंग लेटर्स भेजे। थ्क्। को जल्द ही थ्मद.च्ीमद का उपयोग करने वाले रोगियों में 140 मामलों की रिपोर्ट प्राप्त हुई। इनमें से 27 रोगियों को हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी की आवश्यकता थी। थ्क्। को पांच स्वतन्त्र संसथान और क्लिनिक्स से इकोकार्डियोग्राफिक रिपोर्ट भी मिली। छह महीने से अधिक समय तक थ्मद.च्ीमद लेने वाले रोगियों में संवहनी रोग (टंेबनसंत क्पेमंेम) का वास्तविक प्रसार लगभग 33ः या एक तिहाई रोगियों में था। यह जानकारी चैंकाने वाली थी कि कम से कम छह महीने की अवधि के लिए थ्मद.च्ीमद लेने वाले एक तिहाई रोगियों में गंभीर रूप से हार्ट वाल्व डैमेज हुई थी, इनमें से कई लोगो के डैमेज वाल्व को बदलने के लिए ओपन हार्ट सर्जरी की आवश्यकता थी। तीन महीने से कम समय तक थ्मद.च्ीमद लेने वाले रोगियों में वाल्व डैमेज की संभावना 22ः थी। थ्क्। ने अनुमान लगाया कि तीस से चालीस लाख अमेरिकियों ने वजन घटाने के लिए थ्मद.च्ीमद लिया था। थ्क्। ने यह कभी यह नही सोचा था कि रोगी इन दवाओं को काॅम्बिनेशन में उपयोग करेंगे जिसे थ्क्। ने कभी भी इन दवाओं को लंबे समय के उपयोग के लिए कभी भी अधिकृत नहीं किया था।५
15 सितम्बर 1997 को थ्क्। द्वारा थ्मद.च्ीमद की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। थ्मद.च्ीमद से सम्बंधित 9000 से ज्यादा मुकदमे अदालत में दायर किये गये और वेथ फार्मा कम्पनी पर लगभग $3.75 इपससपवद (28,125 करोड़ रुपए) का जुर्माना भी लगाया गया।६
भारत में स्थितिः थ्मदसिनतंउपदम भारत में अगस्त 1998 में बैन कर दी गयी थी।७ Phentermine के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
ब्लड प्रेशर ;हाइपरटेनशनद्ध की दवा के कारण उत्पन्न होने वाली हृदय सम्बंधित समस्याएँ-
2. साल्ट का नामः मिबेफ्राडिल (Mibefradil)ः मिबेफ्राडिल को Posicor ब्रांड नाम से बेचा जाता था जो की एक हाई ब्लड प्रेशर की दवा था। मिबेफ्राडिल के प्रीमार्केटिंग क्लिनिकल ट्रायल्स के दौरान सलाहकार सदस्यों ने काफी नाराजगी दिखाई, जब एक सत्तर वर्षीय व्यक्ति को अचानक मौत का सामना करना पड़ा। FDA के वरिष्ठ अधिकारी भी चिंतित थे जब हार्ट फेलियर (Congestive Heart Failure) वाले मरीजों में मिबेफ्राडिल का उपयोग कर चल रहे एक अध्ययन में 142 अन्य अचानक मौत की सूचना मिली थी।
मिबेफ्राडिल के साथ एक और समस्या तब उत्पन्न हुई जब रोगियों ने अपने हृदय गति में तीव्र कमी (Congestive Heart Failure) का अनुभव किया। इसके अलावा, जब रोगियों ने कोलेस्ट्राॅल कम करने वाली दवाओं के साथ मिबेफ्राडिल लिया, तो कई रोगियों ने अपनी हृदय गति को और भी अधिक गंभीर रूप से धीमा होने का अनुभव किया। कई कोलेस्ट्राॅल कम करने वाली दवाओं के साथ मिबेफ्राडिल के उपयोग के खिलाफ चेतावनी शामिल करने के लिए अपने लेबल को बदलने के लिए सहमत हुए। लेबल में बदलाव के बावजूद, संभावित मौतों के लिए नई दवा से संबंधित अधिक से अधिक रिपोर्टें आईं। 8 जून, 1998 को, रॉश दवा कंपनी (Roche Pharma) ने मिबेफ्राडिल को बाज़ार से वापस ले लिया।५
एन्टी बायोटिक दवा बनी हार्ट की दुश्मन-
3. साल्ट का नामः ग्रीपाफ्लोक्सासिन (Grepafloxacin): ग्रीपाफ्लोक्सासिन को Raxar ब्रांड नाम से बेचा जाता था। Raxar एक एंटीबायोटिक दवा थी। जिसे अगस्त 1997 में एप्रूव्ड किया गया था। Raxar कई लोगो में अचानक से ह्रदय गति रुकने (cardic arrest) का कारण बनी जिसके कारण इसे 1999 में बाजार से हटा दिया गया। त्ंगंत से सम्बंधित एक कहानी 30 वर्षीय माइक (Mike) नाम के एक व्यक्ति की है, जिसे तीव्र साइनस इन्फेक्शन (acute sinus infection) के लिए डाॅक्टर ने उसे त्ंगंत प्रेसक्राइब किया था। माइक ने दवा लेने के बाद अच्छा महसूस किया लेकिन 6 दिन बाद उसकी तबियत ज्यादा खराब हुई जिसके कारण उसे हाॅस्पिटल में भर्ती कराया गया लेकिन भर्ती कराने के कुछ ही देर बाद उसकी मौत हो जाती है, और जब माइक की आटोप्सी कराइ जाती है तो ये निकल कर आता है की उसका हृदय बिलकुल सामान्य है लेकिन त्ंगंत के कारण उसे कार्डिक अरेस्ट (cardic arrest) हो गया था।
माइक की मौत के दो महीने के बाद त्ंगंत को थ्क्। द्वारा मार्किट से हटा लिया गया था। त्ंगंत को घातक हृदय ताल व्यवधान (fatal heart rhythem disruptions) के कारण हुई बहुत सी मौतों के कारण उसे मार्किट से हटा दिया गया था। रे.डी. स्ट्रैंड (‘डेथ बाई प्रिस्क्रिप्शन’ के लेखक) ने जब त्ंगंत से होने वाली समस्याओं के बारे जाँच की तो उन्हें एक रिपोर्ट मिली जिसमें मुख्य ट्रायल में त्ंगंत के कारण घातक हृदय ताल व्यवधान (fatal heart rhythem disruptions) के प्रमाण मौजूद थे।५
भारत में स्थिति: भारत में कभी बेचीं नहीं गयी।
इसको दूसरे शब्दों में कहें तो कंपनी को ट्रायल के दौरान ही दवा के दुष्प्रभाव की जानकारी मिली लेकिन कंपनी ने लालच में आकर दवा के दुष्प्रभाव को जानबूझकर छुपाया अमेरिका जैसे देश की नियामक एजेंसी थ्क्। को भी ऐसी कंपनियां मूर्ख बना देती हैं और थ्क्। जैसी संस्था को भी रिश्वत देकर अपनी दवा अप्रूव्ड करवाकर झूठे क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल की रिपोर्ट दिखा कर लाखों लोगों के मरने के बाद कानूनी कार्रवाई के बाद अपनी दवाओं को वापस लेती है जिस दवा को हम डाॅक्टर के कहने से बहुत प्रमाणिक मानते हैं वह दवा ही हमारी मौत का कारण बनती है।