गिरिडीह (झारखण्ड)। जैन मुनि आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज के महापारणा महोत्सव के दूसरे दिन प्रातः परसनाथ पर्वत सह सम्मेद शिखरजी की तलहटी मधुबन में योग और आध्यात्म की धारा बही। योगऋषि परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने पूज्य आचार्य जी समेत सभी को योगाभ्यास कराया। इसमें जैन व गैर जैन धर्मावलंबियों ने हिस्सा लिया। मधुबन में परम पूज्य स्वामी जी महाराज का पहला योग शिविर था। वहीं पूज्य आचार्य जी ने आध्यात्मिक ज्ञान दिया।
मंच पर पूज्य आचार्य जी महारान को नमन कर पूज्य स्वामी जी महाराज ने योगाभ्यास शुरू कराया। एक तरफ पूज्य आचार्य जी अपने आसन पर योग मुद्रा में थे, वहीं योग परम पूज्य स्वामी जी महाराज सबको योग की सीख दे रहे थे। कभी-कभी पूज्य स्वामी जी महाराज तो कभी पूज्य आचार्य जी महाराज योग व साधना-उपासना का महत्व बताते रहे। इस दौरान पूज्य आचार्य जी ने कहा कि दो तीर्थस्थल कभी नष्ट नहीं होने वाले- एक अयोध्या और दूसरा सम्मेद शिखरजी। जब भी कभी महापुरुष जन्म लेंगे तो वह स्थल अयोध्या होगा, जबकि निर्वाण प्राप्त करने के लिए पावन भूमि सम्मेद शिखरजी होगी। जो खूद करते नहीं, वही ज्यादा बकते है। बर्बादी का कारण चखना और बकना है। स्वाद के लिए शरीर में बीमारी बढ़ा रहे हैं। बकने से संबंध खराब होते हैं। इन दोनों पर नियंत्रण जरूरी है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सराहना कर कहा कि वे देश को क्या नहीं दे रहे, मगर कुछ को यह पच नहीं रहा है। इसलिए उनकी आलोचना करते हैं। परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज जीवन जीने की कला बता रहे तो उनके विरुद्ध भी बोलने से नहीं चूकते।
557 दिनों की साधना में दस माह नहीं सोए: पूज्य आचार्य जी महाराज ने बताया कि 557 दिनों की साधना में उपवास के दौरान सिर्फ 13 बार जल लिया। दस माह रात में सोए नहीं, ध्यान-जप में समय बिताया। एक-एक घण्टा सूर्योपासना के अलावा भस्त्रिका, कपालभाति, उद्यानबंध, अनुलोम-विलोम किया। मई-जून में दोपहर 12 और 2 के बीच एक घण्टा सूर्योपासना करते रहें कड़ी धूप में पीठ काली पड़ गई थी, मगर यही साधना है।