स्वदेश स्वाभिमान - Swadesh Swabhiman

कार्यकर्ता बैठकः अंतर्राश्ट्रीय योग दिवस-2023, लंदन, यू.के.

योगेन योगे सम्पद्यते

पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में बाॅलटन, यू.के. में योग शिविर का आयोजन किया गया जिसमें हजारों की संख्या में भाई-बहन उपस्थित रहे।
  • पूरे विश्व में पतंजलि योगपीठ की निःशुल्क योग कक्षाएं संचालित-
    लोग कहते हैं कि इंग्लैण्ड (यू.के.) में फ्री में कुछ भी नहीं मिलता, पर यह हमारे पतंजलि का योग है जो यहाँ भी पतंजलि योगपीठ यू.के. (ट्रस्ट) के वालन्टियर्स निःशुल्क बांटते हैं। मुझको नहीं लगता कि पतंजलि के योग को छोड़कर वहाँ कुछ भी फ्री मिलता है। वो तो पूज्य स्वामी जी की कृपा है जो वीक एण्ड पर हमारी लगभग 400 से ज्यादा कक्षाएं निःशुल्क संचालित होती हैं। पिछले 15-20 वर्षों से हमारे योग शिक्षक अनावरत रूप से निःशुल्क योग कक्षाएं संचालित कर रहे हैं।

  • कोरोना काल से लोगों में बढ़ा योग-आयुर्वेद के प्रति विश्वास-
  कोविड के समय जब सभी स्वास्थ्यगत व्यवस्थाएं, पूरा मेडिकल सिस्टम, डब्ल्यू.एच.ओ. असहाय हो चला था तब सारी दुनिया ने योग-आयुर्वेद का चमत्कार देखा। जो लोग योग पर विश्वास नहीं करते थे, उनको भी विश्वास करना पड़ा, कि जिन्दगी चाहिए तो योग अपनाना ही पड़ेगा। योग से योग का भला नहीं होगा अपितु योग करने वाले का भला होगा। स्वयं का भला चाहिए तो योग करना ही पड़ेगा। दुनियां में ऐसा कौन है जो अपना भला नहीं चाहता। इसलिए योग को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करें।
  • योग की वैश्विक स्वीकार्यता-
    हम सब परम सौभाग्यशाली हैं कि परम पूज्य स्वामी जी महाराज के सान्निध्य में योग की विधा को जान व समझ पा रहे हैं। पूज्य स्वामी जी महाराज ने योग को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। उसी योग को एक तपस्वी, योगी माननीय प्रधानमंत्रीजी ने यूनाइटेड नेशन में जाकर अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस के रूप में मान्यता दिलाई। 170 से ज्यादा देशों ने योग को स्वीकार्यता दी और आज प्रत्येक वर्ष 21 जून को पूरी दुनिया योग के रंग में रंगी नजर आती हैं देश चाहे कोई भी हो, भाषा चाहे कोई भी हो, समझ में आती हो या न आती हो, लेकिन योग सबको समझ में आता है। आपको बेशक मेडिटेशन, योग के नियम, आसन, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि और योग के विषय में गहरी-गहरी बातें, न पता हों, योग के विषय में बहुत ज्यादा डीप नाॅलेज न हो लेकिन सबको पता है कि थोड़ा ब्रीदिंग एक्सरसाईज करनी है।

  • जीवन में सुख-समृधि व उन्नति प्राप्त करने का सरलतम साधन है योग-
    शास्त्रों में लिखा है योगेन योगे सम्पद्यते। इसका सरल अर्थ है कि आप योग करोगे तो योग से योग का रास्ता खुलता जायेगा। आज योगी बनकर योग करना जरूरी नहीं है। योग करोगे तो आपके द्वारा किया गया योग स्वतः ही आपको योगी बना देगा। कई लोग कहते हैं कि हम तो कई चीजों का पालन ही नहीं करते हैं। हम क्या करें? योग करना शुरू करोगे तो सारी चीजें अपने-आप ठीक होने लगेंगी। हमने भारत में साईको सोमेटिक स्टडी की जिसमें हमने अध्ययन किया कि योग करने से शारीरिक व मानसिक स्तर पर कया परिवर्तन होते हैं। हमनें देखा कि योग करने से फिजीकिल, मेंटल तथा स्प्रीच्युअल परिवर्तन होते हैं और आपको कुछ पता भी नहीं चलता। आप जीवन के प्रति सकारात्मक, जीवन की उन्नति देने वाले, सुख, समृद्धि और शांति देने वाले हो जाते हैं।

  • जीवन के समस्त दुःखों का निवारण मात्र योग है-
हम चाहे देश या विदेश में हैं, किसी भी कल्चर या कम्युनिटी से सम्बंध रखते हैं, कोई भी भाषा बोलते हैं किन्तु जिन्दगी में दुःख तो कोई नहीं चाहता। दुःख से हम दूर भागते हैं पर दुःख है जो हमारा पीछा ही नहीं छोड़ता। जिन्दगी में दो सुख के लिए दस दुःख उठाते हैं। सुख तो पता नहीं चलता है और दुख सामने खड़े दिखाई देते हैं। हमको लगता है कि जीवन में थोड़ी सी उन्नति होगी, तो सुख आयेगा। थोड़ा सा सुख आया, पर और दुख आगे खड़े दिखायी देते हैं तो इसकी निवृत्ति का उपाय क्या है? इससे छूटने का उपाय क्या है? इससे बचने का उपाय क्या है? संसार में इससे बचने का उपाय है तो मात्र योग हैं योग की शरण में जाकर ही हम दुख से बच सकते हैं। योग में कहीं न कहीं एक भावना है, जागरूकता का भाव है।

लन्दन दूतावास में राजदूत श्रीयुत ज्ञान चन्द्र से भेंट वार्ता

  • वसुधैव कुटुम्बकम् में निहित हैं )षियों के भाव-
   योग हमारे ऋषियों-महर्षियों की विरासत है। आप अलग-अलग देवी-देवता, परम्परा, अलग-अलग सम्प्रदाय या कल्चर बहुत सारे लोगों को धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फोलो करते होंगे। पर योग ऐसी परम्परा है जो हम सबको एक अम्ब्रेला (छतरी) के नीचे लाता है। योग का कोई धर्म नहीं है। हमें गर्व है कि योग की स्थापित करने वाले, योग पर जिन्होंने अनुसंधान किया वे सभी हमारे ऋषि-महर्षि, सभी हमारे सनातन, वैदिक परम्परा के लोग थे। योग को हम लोग पूरे विश्व में पहुँचाने के लिए अपनी सहभागिता और योगदान दें जिससे पूरी दुनियां को एक सूत्र में पिरोने का काम कर सकें। हम ग्लोबलाइजेशन की बात करते हैं, तो दुनियां भी ग्लोबलाइजेशन की बात करती है। ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले वसुधैव कुटुम्बकम् के माध्यम से कहा था कि यह पूरा संसार हमारे लिए एक पूरा परिवार है। यह ऋषि ही कहते थे बाकी दुनियां में कोई नहीं कहता। योग एक ऐसी संस्कृति है जिसमें हम प्रार्थना करते हैं हिन्दू, सनातन, वैदिक परम्परा में सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रार्थना करते हैं, अपने लिए व्यक्तिगत रूप से कोई डिमाण्ड नहीं करते। हम कहते हैं ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यन्तु, मां कश्चित् दुःखभाग् भवेत्’’। कि हे भगवान्, जो भी दुनियां में हैं सभी सुखी हो, कोई दुःखी न हो। हिन्दू सनातन संस्कृति ही ऐसा उद्घोष करती है, दूसरा कोई नहीं करता। तो आप उस संस्कृति, कल्चर, उस परम्परा के संवाहक हैं, संरक्षक हैं। समाज में, सोसायटी में, अपने परिवार में आपको उन परम्पराओं को आगे बढ़ाना है। आगे बढ़ाते हुए विश्व में शांति स्थापित का दायित्व भी हमारा और आपका है। क्योंकि हम दुनियां में सुख की बात करते हैं तो दुनियां को अशांति से बचाने का काम भी आप और हम कर सकते हैं।

 यु. के. में परम पूज्य आचार्य जी महाराज, साध्वी देवादिती जी, साध्वी देववाणी, माता सुनीता पोदार जी द्वारा ग्लासका में योगाभ्यास
जीवन में सदैव योग करना, अपनी धार्मिक, आध्यात्मिक मान्यताओं के साथ रहना, मस्त रहना, खुश रहना, मुस्कुराते रहना। आप सुखी रहोगे और सभी दुःखों से पिण्ड छुटेगा। दुख हमारे आस-पास भी नहीं फटक पायेगा। तो आप सब जुड़े हैं एक भावना से, परम पूज्य श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की सूक्ष्म उपस्थिति व उनके पावन संदेश से। पूज्य स्वामी जी की भी आपके प्रति सुवेच्छा रहती है, शुभकामनाएं रहती हैं और भारत में इस बार माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की जो दृष्टि है, जो सोच है, उसके परिणामस्वरूप हमारी संस्कृति और कल्चर पूरी दुनियां में पहुंच रहा है। हमारा कत्र्तव्य है कि हम जहां भी हैं, कम से कम अपने हिस्से का काम अवश्य करें। यह हमारा कत्र्तव्य है। आइये! योग करें।

यु. के. में प्रतिनिधि मंडल से भेंट वार्ता

यु. के. में नेपाली मूल के योग शिक्षकों का मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद

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