आयुर्वेद अमृत
आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद
बालतन्त्रम्/शिशुरोग-चिकित्सा
शिशु के लिए अतिसार-नाशक क्वाथ -(योग सं.-82)
दार्वी हरिद्रा कुटजस्य बीजं, सिंही सयष्टीमधुकं च तुल्यम्।
क्वाथः शिशोः स्तन्यकृते च दोषे सर्वातिसारेषु च सर्वदेष्टः।।73।।
दार्वी (दारुहल्दी), हरिद्रा (हल्दी), कुटज के बीज (इन्द्रजौ), सिंही (कण्टकारिका), यष्टिमधुक (मुलेठी)- इनको समान मात्रा में लेकर क्वाथ बनाएं। यह क्वाथ माता के दूषित स्तन्ध (दूध) से उत्पन्न शिशुरोगों को नष्ट करता है तथा शिशुओं के सभी प्रकार के अतिसार (दस्त) में भी सदैव अत्यन्त हितकर होता है।
अतिसारग्रस्त शिशुओं के लिए हितकर क्वाथ एवं अवलेह (योग सं.-83-84)
बिल्वं च पुष्पाणि च धातकीनां जलं सलोध्रं गजपिप्पली च।
क्वाथावलेहौ मधुना प्रशस्तौ, बालेषु योज्यावतिसारितेषु।।74।।
कच्चा बिल्वफल, धातकीपुष्प, जल (सुगन्धबाला), शाबर लोध्र एवं गजपिप्पली का क्वाथ बनाकर शीतल होने पर मधु के साथ अतिसारग्रस्त बालकों को पिलाएं। इसी प्रकार इन्हीं ओषधियों का अवलेह बनाकर मधु के साथ चटाएं। ये दोनों योग अतिसारग्रस्त बालकांे के लिए अत्यन्त हितकर एवं प्रशास्त माने जाते हैं।
कासज्वर-छर्दिनाशक अवलेह (योग सं.-85)
शृंड्गीं सकृष्णातिविषां विचूण्र्य,लेहं विदध्यान्मधुना शिशूनाम्।
कासज्वरच्छर्दिभिरर्दितानां, समाक्षिकां वातिविषामथैकाम्।।75।।
कास (खांसी), ज्वर (ताप) एवं छर्दि (उल्टी) से पीड़ित बालाकों को शृंड्गी (कर्कटशृंगी/काकड़ासिंगी), कृष्णा (पिप्पली) एवं अतिविषा (अतीस) का चूर्ण बनाकर मधु के साथ चटाना चाहिए। इसी प्रकार अतिविषा के चूर्ण का मधु के साथ अवलेहन करवाने से भी बालकों के कास, ज्वर एवं छर्दि रोग नष्ट हो जाते हैं।