स्वदेशी में क्रांति : पतंजलि द्वारा रुचि सोया का अधिग्रहण स्वदेशी के क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी कदम ।
- विदेशी कंपनियों के लिए भारत एक बाजार है लेकिन पतंजलि के लिए परिवार है।
- पतंजलि एक मात्र ऐसी कम्पनी है जो महात्मा गाँधी के ट्रस्टीशिप के सि़़द्धांत को मूत्र्तरूप दे रही है। जिसमें कोई मालिक, शेयर होल्डर या प्राॅफिट होल्डर नहीं है। अपितु सारा प्राॅफिट केवल चैरिटी के लिए है।
- पतंजलि का संकल्प है कि प्राॅफिट से 100 प्रतिशत चैरिटी अर्थात् प्राॅस्पेरिटी फाॅर चैरिटी। पतंजलि का संचालन कोई अमीर नहीं बल्कि फकीर करते हैं। पतंजलि किसी कम्पनी का नाम नहीं, बल्कि आर्थिक क्रान्ति का नाम है। पतंजलि प्रोफिट के लिए नहीं, प्योरिटी व चैरिटी के लिए काम करता है।
- पतंजलि की यात्रा स्वार्थ की नहीं बल्कि अर्थ से परमार्थ की है।
पतंजलि का उद्योग भी कोई सामान्य उद्योग नहीं बल्कि सेवा उद्योग है। पतंजलि में केवल सामान हीं नहीं बनाया जाता बल्कि अच्छे इन्सान बनाने का कार्य भी किया जाता है। पतंजलि द्वारा व्यापार या कारोबार नहीं किया जाता बल्कि उपकार व परोपकार किया जाता है। पतंजलि का उद्देश्य धन कमाना नहीं, बल्कि देश बचाना है।
भारत स्वदेशी, शून्य तकनीकी की विदेशी वस्तुओं के उत्पादन में तथा खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बने, यह पतंजलि का बड़ा संकल्प है। रुचि सोया एक बहुत अच्छी कम्पनी है इसको हम और प्रामाणिकता से आगे बढ़ाना चाहते हैं। पूज्य स्वामी जी का संकल्प है कि स्वदेशी के इस विशाल उपक्रम को, जो किसी कारण से दिवालिया होने से कगार पर पहुंचकर एन.सी.एल.टी. में चली गयी, वह न तो विदेशी हाथों में जाये और न ही बर्बाद हो, यह कम्पनी लोगों के द्वारा बड़ी मेहनत से खड़ी की गयी और इसको राष्ट्रीय धरोहर मानते हुये पतंजलि ने रुचि सोया को बचाने का संकल्प लिया।
पतंजलि का स्वदेशी दर्शन-परम पूज्य स्वामी जी महाराज, श्रद्धेय आचार्य जी व पतंजलि का सदैव से संकल्प व दर्शन रहा है कि भारत को विदेशी कम्पनियों की आर्थिक व सांस्कृतिक लूट से बचाया जाये, विदेशी कम्पनियों के लिए भारत एक बाजार है लेकिन पतंजलि के लिए परिवार है। वर्तमान समय में देश में कार्यरत 12 लाख से अधिक रजिस्टर्ड कम्पनियों में से पतंजलि एकमात्र ऐसी संस्था है जिसका उद्देश्य है। अपने सारे प्राॅफिट को केवल चैरिटी में लगाना, विगत 25 वर्षों से पतंजलि के माध्यम से सेवा के अनेकों कार्य चल रहे हैं। योगसेवा, निःशुल्क योगकक्षायें, 2000 हजार से अधिक पतंजलि चिकित्सालय, आरोग्य केन्द्र, योग आयुर्वेद के ऊपर अनुसंधान, शिक्षा के क्षेत्र में वैदिक गुरुकुलम्, वैदिक कन्या गुरुकुलम्, पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय व पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के साथ-साथ पतंजलि सेवाश्रम (अनाथ आश्रम), पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट, योगग्राम, पतंजलि ग्रामोद्योग, गौशाला इत्यादि के साथ लाखों किसानों, आदिवासियों वनवासियों से गौमूत्र, जड़ी बूटियाँ, वनौषधियाँ खरीदकर उनको स्वावलम्बन दिया है तथापतंजलि ने मल्टीनेशनल कम्पनियों के विकल्प के रूप में स्वदेशी का एक बहुत बड़ा व्यवहारिक आदर्श माॅडल खड़ा किया है। जिससे उच्च गुणवत्ता युक्त हर्बल उत्पाद, न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध करवाये जाते हैं। पतंजलि एक मात्र ऐसी कम्पनी है जो महात्मागांधी के ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त को मूत्र्तरूप दे रही है। जिसमें कोई मालिक, शेयर होल्डर या प्राॅफिट होल्डर नहीं है। अपितु सारा प्राॅफिट केवल चैरिटी के लिए है।
विदेशी कम्पनियों का षड्यन्त्र व लूट-
विदेशी कम्पनियों का एक मात्र धर्म है कि किसी भी तरीके से केवल मुनाफा कमाया जाए, विदेशी कम्पनियाँ मुनाफा कमाने के लिए किसी भी सीमा तक समझौता करती हैं कई बार तो यह विदेशी कम्पनियाँ अपने मुनाफे के लिए नियम कायदे, कानूनको तोड़कर, देशों की सरकारों को भी कठपुतली की तरह अपनी उंगलियों पर नचाती हैं। जिसको व्यापारिक भाषा या आर्थिक जगत में ‘‘कार्पोरेट वाॅर’’ कहते हैं। इस ‘‘कार्पोरेट वाॅर’’में विदेशी कम्पनियाँ अपना मुनाफा कमाने के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा व कम्पटीशन करती हैं। दूसरी प्रतिद्वन्दी कम्पनियों को बदनाम करने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाती हैं। अपने प्रतिद्वन्दी कम्पनियों में जासूसी इत्यादि के साथ अपने व्यक्तिप्लान्ट करके उसको फेल करवाने के लिए षड्यन्त्र रचती हैं। जब इससे भी सफलता नहीं मिलती तो बाजार में एक छत्र साम्राज्य स्थापित करने के लिए अपनी प्रतिद्वन्दी कम्पनियाँ को लालच देकर खरीद लेती हैं। ताकि बाजार में कम्पटीशन खत्म हो जाये, और वह अपनी मन-मर्जी से आर्थिक लूट कर सकें, बाजार पर कब्जा करने की यह घटनायें, जहां पर गरीब व्यक्ति निवास करते हैं ऐसे पिछड़े व विकासशील देशों में सर्वाधिक होती हैं। जहाँ के व्यक्ति पहले से गरीब हैं वहाँ यह सुनियोजित तरीके से षड्यन्त्रपूर्वक कानूनी लूट करती हैं। 400 साल पहले एक विदेशी ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत आयी और भारत को केवल आर्थिक तौर पर ही नहीं लूटा, बल्कि सैकड़ों वर्षों तक गुलाम बनाकर भारत का सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, व्यापारिक ताना-बाना नष्ट कर दिया। आज भी विदेशी कम्पनियों की यह लूट लगातार जारी है। प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रुपये भारत से यह विदेशी कम्पनियाँ शून्य तकनीकी की वस्तुओं के नाम पर लूटती हैं। तेल, साबुन, दन्त मंजन, मसाले, आटा, दाल, कपड़े जूते, चटनी, पापड़, शैम्पू, क्रीम, व खाने-पीने के खाद्य तेलों इत्यादि जैसे शून्य तकनीकी के सामान बनाकर भारत के बाजार पर इन विदेशी कम्पनियों का कब्जा है।
विदेशी कम्पनियों का भारत के खाद्य तेल बाजार पर कब्जा-
विदेशी कम्पनियाँ जैसे विल्मर, कारगिल इत्यादि लगातार भारतीय बाजार पर कब्जा करने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे चलाकर तथा स्वदेशी कम्पनियों को खरीदने के लिए आक्रामक रणनीति बनाती रहती हैं। पूर्व में भी अनेकों भारतीय स्वदेशी कम्पनियाँ जैसे लिमका, अंकल चिप्स, ओके साबुन, थमसप, माजा, गोल्डस्पोट, रिमझिम, चन्द्रिका साबुन इंदुलेखा, ब्रांड, सिबाका ब्रांड, इत्यादि स्वदेशी कम्पनियों को विदेशी कम्पनियों ने बर्बादी के कगार पर पहुंचाकर औने-पौने दामों में खरीदा तथा खाद्यतेल बाजार में जैमिनी बाॅन्ड, सनफ्लावर ब्राॅड, रथ ब्राॅन्ड इत्यादि तो केवल कुछ नाम है जिनको कारगिल इत्यादि विदेशी कम्पनियों ने खरीदकर भारत के बाजार के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है,ताकि भविष्य में भारतीय खाद्य तेल बाजार पर पूरा कब्जा करके अपनी मन-मर्जी कर सकें।
रुचि सोया का पतंजलि द्वारा अधिग्रहण-
विगत दिनों स्वदेशी के इतिहास में आर्थिक जगत की एक बड़ी घटना हुई है। जिसमें 50 वर्ष पुरानी खाद्य तेल कम्पनी रुचि सोया जो किसी कारणवश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई थी, जिस कम्पनी से लाखों किसान जुड़े हुये हैं एवं हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ था, परम पूज्य स्वामी जी महाराज व श्रद्धेय आचार्य जी ने संकल्प लिया है कि भारत को हम विदेशी कम्पनियों की लूट से बचायेंगे। भारत में खाद्य तेलों का एक बड़ा बाजार है, जिसके एक बड़े हिस्से पर विदेशी कम्पनियों का कब्जा है। चिकित्सा विज्ञान से जुड़ी हुई अलग-अलग रिसर्च समय-समय पर आती रहती हैं कि खाद्य तेलों में मिलावट भारत में बीमारी का एक बड़ा कारण है। हम देश के लोगों को खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट से होने वाली बीमारियों से बचाना चाहते हैं। इसी खाद्य तेल के बाजार में एक 50 वर्ष पुरानी कम्पनी कार्य कर रही थी। जिसके पूरे देश में 22 से अधिक स्थानों पर प्लांट हैं जो भारत को खाद्य तेलों के मामलों में एक बड़ी आपूर्तिकर्ता स्वदेशी कम्पनी है। जिसको 2016 में फाॅर्चून पत्रिका ने भारत की 100 बड़ी कम्पनियों में स्थान दिया, रूचि सोया के पास 4000 से अधिक वितरकों का आदर्श वितरण तन्त्र है। रूचि सोया के मुख्य ब्राॅड न्यूट्रोला, महाकोश, सनरिच, रूचि गोल्ड, सोयूम इत्यादि की लगभग 10 लाख रिटेल स्टोर पर पहुँच है। इसके साथ-साथ बड़ी संख्या में लगभग 50 हजार हेक्टेयर से ज्यादा पाॅम ट्री की प्लांटेशन का कार्य भी रूचि सोया के माध्यम से हुआ है। किसी कारण से स्वदेशी की यह बड़ी कम्पनी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गयी, इस कम्पनी को विदेशी कम्पनियाँ औने-पौने दामों में खरीदकर भारत खाद्य तेल बाजार पर प्रभुत्व स्थापित करके मन-मर्जी करनी चाहती थीं। परन्तु परम पूज्य स्वामी जी महाराज एवं श्रद्धेय आचार्य जी ने स्वदेशी के इस बड़े संकल्प व राष्ट्रीय धरोहर (रुचि सोया) को बर्बाद होने से बचाने के लिए इसका अधिग्रहण करके एक सुनियोजित सुदृढ़ दूरगामी योजना तैयार की है। जिससे किसानों को स्वावलम्बन, रोजगार व विदेशी कम्पनियों की लूट से देश को बचाकर खाद्य तेलों में हम स्वावलम्बी बन सकते हैं।
रुचि सोया व स्वदेशी की आगामी योजना-
अगले 6 महीने में पूज्य स्वामी जी महाराज का संकल्प है कि कम से कम 10 से 20 हजार लोगों को रुचि सोया के खाद्य तेल के कार्य में रोजगार देंगे, पतंजलि रूचि सोया को एक राष्ट्रीय धरोहर मानती है जो स्वदेशी कम्पनी के रूप में लाखों किसानों को जोड़कर हजारों लोगों को रोजगार देने के साथ-साथ खाद्य तेल बाजार में विदेशी कम्पनियों को कड़ी टक्कर दे रही है। पतंजलि किसी एक व्यक्ति की नहीं बल्कि समस्त भारतवासियों की कम्पनी है। भविष्य में योजना है कि वर्तमान में जहाँ रूचि सोया का टर्नओवर 13 हजार करोड़ का था, उसको 15 हजार करोड़ तक लेकर जायें और आने वाले कुछ वर्षों में इसको 25 से 30 हजार करोड़ की कम्पनी बनाकर, स्वावलम्बन, स्वदेशी व सेवा का बड़ा कार्य हो तथा किसानों के साथ एग्रीमेंट करके हजारों और नये किसानों को जोड़कर उनको स्वावलम्बी बनाया जाये, क्योंकि पतंजलि का संकल्प है कि प्राॅफिट से 100 प्रतिशत चैरिटी अर्थात् प्राॅस्पेरिटी फाॅर चैरिटी।