कोटद्वार भाबर के घमंडपुर (दुर्गापुर) निवासी शोभा रावत सही मायनों में अपराजिता है। बीमारी के चलते तीन साल बिस्तर पर काटने के बाद शोभा ने योग को अपनाकर न केवल बीमारी को मात दी, बल्कि आज वह दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है। नियमित योगाभ्यास कर शोभा आज योगाचार्य बनकर दूसरों को स्वस्थ जीवन जीने कीकला सिखा रही है। अब उन्होंने अपना पूरा जीवन योग के लिए समर्पित कर दिया है। शोभा रावत रिखणीखाल ब्लाॅक के जेठू गांव की मूल निवासी है। दो बेटी और एक बेटे की मां शोभा रावत का परिवार खुशहाल चल रहा था। इस बीच अक्टूबर 2008 में उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया। करीब तीन साल अक्टूबर 2011 तक शोभा की दुनिया बिस्तर तक ही सिमट कर रह गई थी। इस बीच 14 अक्टूबर, 2011 को पीएनबी में सेवारत उनके पति विमल सिंह रावत की आकस्मिक मृत्यु से शोभा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। परिजन उन्हें योग शिविर ले गए। जहां वह नियमित योग करने लगी, परिणामस्वरूप बहन शोभा ने महज 6 महीने में ही अपनी बीमारी से छुटकारा पा लिया। शोभा ने अपना जीवन योग को समर्पित कर दिया। अब वह अबला को सबला बनाने के लिए गाँव-गाँव जाकर योग सिखा रही हैं। बहन शोभा पिछले 6 साल में विभिन्न योग शिविरों के माध्यम से 20 हजार से भी अधिक लोगों को योग की दीक्षा दे चुकी हैं।उनके योग के प्रति समर्पण को देखते हुए पतंजलि ने उन्हें राज्य कार्यकारिणी का सदस्य बनाया है। समिति की ओर से उन्हें देश के अन्य प्रांतों में भी भेजा जाने लगा है। वह कहती हैं कि अमर उजाला अपराजिता कार्यक्रम महिलाओं को जागरूक करने की अहम पहल है। कार्यक्रम महिला सशक्तिकरण के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है।
सही मायने में अपराजिता है कोटद्वार की शोभा
कोटद्वार भाबर के घमंडपुर (दुर्गापुर) निवासी शोभा रावत सही मायनों में अपराजिता है। बीमारी के चलते तीन साल बिस्तर पर काटने के बाद शोभा ने योग को अपनाकर न केवल बीमारी को मात दी, बल्कि आज वह दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है। नियमित योगाभ्यास कर शोभा आज योगाचार्य बनकर दूसरों को स्वस्थ जीवन जीने कीकला सिखा रही है। अब उन्होंने अपना पूरा जीवन योग के लिए समर्पित कर दिया है। शोभा रावत रिखणीखाल ब्लाॅक के जेठू गांव की मूल निवासी है। दो बेटी और एक बेटे की…